तुमने ही मुझे बीच मझधार में अकेला छोड़ दिया
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मेरा
उस दुनिया तक भी... जहाँ कोई किसी के साथ नहीं जाता.. मैं तुम्हारा साथ दोनों जहाँ में चाहती हूँ.. मैं दोनों जहाँ बस तुम्हारी होकर रहना चाहती हूँ...-
कुछ खोया है तूने, कुछ ऐसा जो तुझको तुझसे भी ज़्यादा प्यारा था,
ये चुप्पी तेरी,.. तेरे अकेलेपन का सबूत देती है..-
अब उन एहसासो का जो कभी तुम्हारे आने से हुआ करतीं थीं, उन साँसों का तुम्हें देखते ही थम जाया करतीं थीं
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नहीं तो, एक सुहानी सुबह मेरा इंतज़ार कर रही थी
काश वो पल ना आता जब मैं बहकी ना होती,ज़िंदगी सँवारने की चाहत में मैंने अपनी ज़िंदगी खराब कर ली-
ना कोई जीतता है और ना हारता है
लेकिन जब यह खेल रुक जाता है तब प्यार हार जाता है-
ऐ गुज़रे हुए वक़्त
तू इतने रंग ना बदला कर..
एक फ़ैसला कर ले
या खुशी दे या बस परेशान ही कर.....
उनकी याद ना दिला इस कदर
मैं तड़प उठती हूँ..
खुद को व्यस्त रखना तो और है..
खाली वक़्त में सीर्फ उनको
सोचती हूँ...
ऐ वक़्त तू कैसे करवट लेता है
सब कुछ पीछे छूट जाता है...
साथ कुछ रहता है तो
कुछ मीठी यादें...
और थोड़े कड़वे सच..
ज़िंदगी की सच्चाई का
सामना करना आसान नहीं...
ऐ गुज़रे हुए वक़्त..
तू जैसा था बहुत अच्छा था
आज भी खाली वक़्त में..
बस ये सोचती हूँ...
तू ही अच्छा था और
सुकून भी तेरे ही साथ था...
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हर गिरह में बाँध तुमको गाऊँ गज़लों में
तुम सवेरा हो मेरा अब तुम ही शामों में-