सुनो !
तुम्हें जानता नहीं हूं मैं
और न मैं तुम्हें जानने की बहुत तीव्र ईच्छा रखता हूं
हाँ,बस कुछ बातें अच्छी लगती है तुम्हारी .....
वैसे social media बहुत अलग ही चीज़ है
और इसकी जो सम्भावनाएं होती है
वह पूरी तरह से हमारे interest पर निर्भर रहती है
कभी कभी तो ऐसा लगता है
आजकल जो भी मैं देख रहा हूँ
वो मुझे देखना चाहिए
या मुझे जानबूझकर दिखाया जा रहा है ....
खैर ये सब उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना की तुम
तुम इसलिए महत्त्वपूर्ण हो
क्योंकि तुम्हारा लिखा हुआ पढ़ता हूं तो पाता हूं
कि मैं भी ऐसा लिख सकता था
मैं भी किसी के साथ बैठकर आसमान देख सकता था
साथ में किसी सफर पर जा सकता था
और भी ढेर सारी अनदेखी कल्पनाएं कर सकता था.....
पर यह दुर्भाग्य रहा मेरा
मैं वास्तविक रूप में किसी का न हो सका
या फिर कोई मेरा न हो सका .....
अंततः मुझे मिला मेरा अकेलापन
जिसमें मैं बस अपने आप में रहता हूं
पर मैं वो देवदास वाली कहानी का हिस्सा नहीं हूं
मैं स्वयं को हर भाव से भरा हुआ महसूस करना चाहता हूं
यही वजह है कि मैं तुमसे जुड़ा हूं .....
-