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Joined 9 February 2019


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27 FEB AT 18:43

प्रेम प्रदान करो, पाने की कामना न रखो।
पाने के बाद, या चाहत पूरी होने के बाद चाहत किसकी रखोगे पार्थ। सोचिए, यदि शिव - पार्वती विवाह न होता तो, क्या उनमें आपसी प्रेम समाप्त हो जाता, क्या कृष्ण और राधा में प्रेम नहीं है? पार्थ, पाने की चाहत ही सबसे बड़ी समस्या है। कर्म, मेहनत और लगन ही हमें आने वाले फल से मिलाती है (यदि साथ रहना है तो) , मिलन कभी समाप्त नहीं होता, चाहत समाप्त हो जाती है, मिलन केवल विवाह तक सीमित नहीं, मिलन इन सबसे परे है, । ❤

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21 FEB AT 12:29

धन दौलत रुतबा कुछ ख़ास नहीं है,
पर, इनकी भी कीमत कुछ ख़ास नहीं है ,
सबकी कीमत में इज़ाफ़ा हो जाता, पर ,
तू बेशकीमती है, और मेरे पास नहीं है।1|

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17 FEB AT 9:57

थोड़ा अहंकार, तू भी कर सकता है,
मेरी कविताओं की प्रेरणा होने का।

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17 FEB AT 9:43

मिले हो तुम तो, एक
नई हरकत करने लगा हूँ,
ख़ौफ़ न था किसी से मुझको,
मौत से अब डरने लगा हूँ।

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14 FEB AT 8:03

इस दिल में मैंने क्या रखा है,
अरसे से तुझे संभाले रखा है ।
आना जाना बंद है अब इधर ,
तेरे बाद ये दरवाजा बंद रखा है।

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13 FEB AT 11:41

हाँ, अब थोड़ी ,
रीढ़ झुक चली है,
शरीर कांपने लगा है,
मैं भूलने लगा हूँ,
शरीर पर झुर्रियां है,
सिर चमकने लगा है,
पेट थुलथुला है,
नींद भी नहीं आती,
तुम्हें परेशानी हो रही है,
पर, तुमसे प्रेम अब भी है,
तुम बताओ,
है अब तुम्हें?

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3 FEB AT 14:14

मान रहा हूँ मैं,
अब हम बूढ़े हो गए हैं,
तुम्हें सहारे की जरूरत है,
तुम्हारी लाठी बना हुआ हूँ।
न मेरे पैरों में जान रही, न तुम्हारे,
तुम्हारे साथ चल रहा हूँ।
तुम्हारी लटें भी भूरी हो चली,
हाँ , सुलझा रहा हूँ ।
हमारे शरीर पर झुर्रियां है,
तुम्हें सहलाना जारी है।
शौक न रहा तुम्हें संवरने का भी,
तारीफ़ तुम्हारी जारी है।
बोल सकने की ताकत नही,
हाँ, तुम्हें सुन रहा हूँ।
आज भी मुझसे ज्यादा तुम मुझमें,
ख़ुद को खुद में ढुंढ रहा हूँ।
मरने का वक्त भी पास है,
हाँ, सपने बुन रहा हूँ।

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21 JAN AT 20:31

काश ऐसा हो पाता,
मैं लौटना चाहता हूं, उस दिन में,
जहाँ तुम अनजान थी मेरी चाहत से,
मैंने तुम्हें कुछ बताया तक न था,
हां, फिर से एक बार, वहीं दोस्ती तक।
एक मौका चाहता हूं,
इस बार तुम्हें,
कुछ नहीं बताऊंगा,
कुछ ज़िक्र न करूंगा,
एहसास तक न होगा तुम्हें।
ऐसा क्यों ?
क्योंकि मनाही के गम से ज्यादा
हमारे बीच की खामोशी का रंज है।
मनाही तुम्हारी इच्छा थी,
लेकीन, खामोशी, मेरी गलती,
तुमसे ज़िक्र करने की।
पर, तुम भी सोचो ,
सालों का सैलाब पल भर में शांत हो गया।
तुमसे पहले सिर्फ़ मेरी कविताओं से ही
तुम्हारी बातें होती थी,
फिर तुमसे,
और फिर से इन्हीं कविताओं पर लौट आया हूं।
फ़िर से सैलाब उमड़ पड़ा है।
इस लौट आने की विधी में,
काश, उस पल तक लौट आना होता,
जहां, मैं ख़ुद को रोक सकता,
ज़िक्र-ए-मोहब्बत से।

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21 JAN AT 13:51

When you realized
बचपन की Life ही अच्छी थी।

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21 JAN AT 13:46

नामुमकिन सा आज मैं काम करूँ,
तुझसे मोहब्बत का इज़हार करूँ।1।

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