शायरी में जब भी मैं तेरी और मेरी बात लिखता हूं
तू लाख दूर सही, मैं हमेशा तुझे मेरे पास लिखता हूं-
मेरे शहर के बाजारों में एक नज़ारा मैं देखता हूं हर रोज
पैसों के लिए पैसे लगाकर भगवान की तस्वीर खरीदतें हैं लोग — % &-
नज़रें मिला के बोलूं मैं उनसे, मेरी हिम्मत ना होती है
जिसने है खोया बस वो ही जाने, पिता की क़ीमत क्या होती है— % &-
मेरे सीने में जो लगी हुई आग है उसपे पानी–बर्फ़ नहीं पड़ता
मुझे इससे बहुत फ़र्क पड़ता है कि तुम्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता — % &-
मुलाकातों–बातों की वो डायरियां अधूरी रह गई
उससे जब दूर हुआ, कई शायरियां अधूरी रह गई-
बहुत ढूंढा पर कोई और यहां अपना लगता नहीं
बस एक आईना ही है जो मेरे रोने पे हंसता नहीं-
मेरे सीने में कई गजलों की लाशें दफ़न हैं जो ना मैं कभी लिख पाया और ना ही किसी को सुना पाया
बस नाम का शायर हूं मैं जो अपने लफ़्ज़ों से ना किसी को हसा पाया और ना ही किसी को रुला पाया-
उसके सामने मैं कोई बाज़ी जीत नहीं पाता, वो खिलाड़ी किसी राज महल की है
जितनी बार देखता हूं ,दिल हार बैठता हूं ,उसकी तो आंखें भी शतरंज खेलती है-
हर रोज़ तुमसे मिलने की झूठी उम्मीदें जेब में रख के निकलता हूं
तुम नहीं मिलते बस तन्हाइयों से मुलाक़ात कर के घर लौट आता हूं-
काश मैं, मैं ना हो के आसमान का एक सितारा होता
हर शाम मेरी इन आंखो के सामने चेहरा तुम्हारा होता
तू भी शाम होते ही छत पे आ जाया करती मुझे देखने को
फिर मैं तुम्हें और तू मुझे देखती, वाह क्या नज़ारा होता-