मेरे सीने में कई गजलों की लाशें दफ़न हैं जो ना मैं कभी लिख पाया और ना ही किसी को सुना पाया बस नाम का शायर हूं मैं जो अपने लफ़्ज़ों से ना किसी को हसा पाया और ना ही किसी को रुला पाया
काश मैं, मैं ना हो के आसमान का एक सितारा होता हर शाम मेरी इन आंखो के सामने चेहरा तुम्हारा होता तू भी शाम होते ही छत पे आ जाया करती मुझे देखने को फिर मैं तुम्हें और तू मुझे देखती, वाह क्या नज़ारा होता