खूब संभालकर रखना घर के बुजुर्गों को
तुझे संवारने में इन्होंने अपनी जिन्दगी दी है
मत समेटना इन्हें घर के किसी कोने में
जलाकर जिस्म इन्होंने जग को रौशनी दी है!
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जो चट्टानों से ना उलझे वह झरना किस काम का
प्यास है ज्यादा पानी कम है
उजाले मद्धम,घनघोर तम है!
शहर बाजार मची भगदड़ है
गांव गली भयानक अंधड़ है
बिखरते सपने, हारते हिम्मत
गमगीन फिजां छाया मातम है!
परकटे पखेरू निहारे गगन को
माली रोए देख उजड़े चमन को
काले धंधे के इस माया नगरी में
जान की कीमत कौड़ी रकम है!
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मौत के साए में अब जिंदगानी ढूंढिए
सन्नाटों के माहौल में दाना पानी ढूंढिए!
मसीहा बना बैठा है जो अपने कूचे में
कारिश्तानी पंकज कभी पुरानी ढूंढिए!!
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( पुरखों का गांव)
जितनी छोटी सी चादर
थी मेरे पुरखों की
उससे ज्यादा समेट कर
रखते थे वे पांव
सराहा जाता था इलाके में अपना गांव !!
भोलेबाबा का मंदिर हो
या भगवती का स्थान
सम आस्था था दोनों में ,
नहीं कोई खींचातान
अमीर गरीब दोनों बसते श्रद्धा के छांव !!
न्याय -नीति संबल था
दीन दुखियों के सहारे
निर्णय निष्पक्ष होता
बगौधा चाहे पैर बजारे
बाघ बकरी दोनों रहते एक हीं ठांव !!
इंद्र और इनारे मिलकर
जितना जल देते थे
मन में भरकर संतोष
सुखपूर्वक जी लेते थे
प्रेमयत्न से खेते थे सूखे में भी नाव !!
लोकरीति बसती थी
सबके कर्म व्यवहार में
संस्कृति अनुरागी थे
सभी समाजिक प्यार में
लोभ- दाव बेअसर ,ना कोई दुष्प्रभाव !!
पालते नहीं द्वेष के नाग
जिससे हो टकराव
सजग चौकन्ने रहते थे
होता नहीं बिखराव
प्रेम एकता से बांधा पुरखों ने अपना गांव!!-
एयर स्ट्राइक मसले पर बवाल क्यूं है
शौर्य एवं पराक्रम पर सवाल क्यूं है
अपना उसूल है छेड़े तो छोड़ेंगे नहीं
फिर राष्ट्रहित मे इतना मलाल क्यूं है
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भिंगोकर खून में वर्दी
वतन को कहानी दे गए !
मोहब्बत है मुल्क से
एक सच्ची निशानी दे गए !
देश टूटने ना पाए इसलिए
सपूत अपने जवानी दे गए !!-
कोई चलता पद चिन्हों पर,
कोई पद चिन्ह बनाता है !
है वही सुरमा इस जग मे,
जो अपनी राह खुद बनाता है !!-
चालाकी से दिग्भ्रमित की गई इस हसीन दुनिया में उस कोने को देखने, ढूंढने की कला विकसित करने का प्रयास कर रहा हूं जहां अंधेरा है । उन लोगों के हिस्से का सूरज तलाशने की कोशिश में हूँ जिससे आज मानवता जिंदा है!
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समस्त परिवार और कुटुंब के कल्याण की कामना के लिए सच्ची निष्ठा, पवित्रता एवं समर्पण का भाव लिए हृदय में पृथ्वी पर जल में खड़ा रहकर अग्नि के समक्ष वायु की उपस्थिति में नभ मंडल में अवस्थित अस्ताचलगामी एवं उदयगामी एकमात्र मुर्त भगवान भास्कर की उपासना सृष्टि के पंचतत्वों की समायोजन एवं सामंजस्य का प्रयास है!
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सफर में डगर बड़ी मुश्किल है पर चलना तो है,
चिराग़ हूं अंधेरा घना है परंतु मुझे जलना तो है।
कोई तो होगा जो थामेगा जलती हुई मशाल को,
अंधेरी शब हो चाहे जितनी लंबी पौ फटना तो है!
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