मन से बड़ा बहरूपी ना कोई, पल पल रचता स्वांग निराले
माया ममता में उलझा रहे वो, पड़ जाये जो मन के पाले
मन के बहकावें में न आ, मन राह भुलायेे भ्रम में डाले
तू इस मन का दास ना बन, इस मन को अपना दास बना ले
मन हैं शरीर के रथ का सारथी, रथ को चाहे जिधर ले जाये
इन्द्रियाँ हैं इस रथ के घोड़े, घोड़ों को विषयों की ओर भगाये
आत्मा औऱ शरीर के मध्य में, ये मन अपनें खेल दिखाये
मन को वश में कर ले जो योगी, वो इसी रथ से मोक्ष को जाये
मन को वश में कर ले जो प्राणी, वो इसी रथ से अनंत को जाये

- आचार्य त्रिपाठी जी