गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलं।
पिको वसन्तस्य गुणं न वायस:,
करी च सिंहस्य बलं न मूषक:॥
अर्थात्:--
गुणी पुरुष ही दूसरे के गुण पहचानता है,गुणहीन पुरुष नहीं। बलवान पुरुष ही दूसरे का बल जानता है,बलहीन नहीं।
वसन्त ऋतु आए तो उसे कोयल पहचानती है,कौआ नहीं।
शेर के बल को हाथी पहचानता है,चूहा नहीं।

- आचार्य त्रिपाठी जी