पं.शाश्वत शंकर त्रिपाठी.   (पं शाश्वतशंकर "सैंकी")
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Joined 20 May 2019


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तुराबी है हम पत्थर न बताओ ,
रो सकता हू मैं भी बिन कंधा दिए ये कह के तो न रूलाओ,,,

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खुली आखों से तो सीमा विस्तार है ,
बंद आखों से मेरा तेरे लिए प्यार है ,,

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तुम्हारी कैद़ से मैं रिहा नही हो रहा ,
छूट तो गया पर सफर नही हो रहा ,,
तू अन्दर घर कर के बैठी है ,
अब मुझसे खुद के लिए घर नही बन रहा ,,,,

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तुम्हे क्या पता जिस दम्भ से तुम रावण वध का स्वांग रचाते हो ,
क्या सच में राम की पूजा और और तुम रावण का वध कर पाते हो ,,
तुम सोचो क्षणिक भी तुम में सामर्थ है जो राम के विघ्नों से भी लड़ सको ,,,
दिखावे से अच्छा सिर्फ राम के आदर्शो का तुम व्रत करो ,,,,,

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मुझे प्रेम तुम्हारे बालों से
जिसमें मैं ऊलझा रहता हू
मुझे प्रेम तुम्हारे माथे से जिसको चूमा करता हू
प्रेम मेरा तेरे उस नयनों से
जिसमें मैं खुद को देखा करता हू
प्रेम मेरा तेरे अधरो से
नाम मेरा जिन पर बसते है
प्रेम मेरा अति सीमित है
मुझ से मुझ में निहित है
यदि तुम न मेरे साथ रहो फिर भी
मेरे पास रहो
यू प्रेम सदा बिन शर्त मेरा
क्षितिज सा सदा ये रखूँगा
सप्त रंग की बनी हो तुम पर
खुद मे समेट तुझे मैं
श्वेत सदा ही ऱखूगा, ,,



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हम मुफ़लिसो के बच्चे है,जनाब
खिलौनों से ज्याद़ा रोटी को तरसते है ,,

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तुम्हारे साथ मेरा मुद्दतों से इश्क चल रहा है ,
मानो मेरे दिल की कोख में कोई बच्चा पल रहा है,,

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जो मिला उसी में खुदा मिला ,,
जाने दो जिसे जाना है किसी की रूक़सती से कैसा गिला ,,,,,,

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यूं थोड़े कतरे कतरे की मिठास उन्हें क्या पता
जो खुद समन्दर से खारे है,,
जीते कम में भी हम और वो ज्य़ादा पाके भी हारे है ,,,,

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साहिल पर मैं रोज कतरा कतरा डूब रहा ह़ू ,
लोग समझते है कि मै किनारे पर घूम रहा हू ,,

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