जिस्मों पर तुमने बरसों ज़ुल्म किया
पर रूह आज भी आज़ाद है
बेड़ियों में जकड़े रखा, दहलीज़ें लांघने ना दी,
पर उन आँखों में उम्मीद आज भी बाक़ी है
जंग आज भी जारी है, वह अबला नहीं, वह नारी है ।-
“क्या करोगे बड़े होके?”
सवाल ख़ास था,
जवाब में पेशा चुन के, आम कर दिया।
ना चुनते कुछ -
तो शायद कुछ भी कर सकते थे।
या, कुछ ना भी करते -
तो शायद कमाल ही करते।-
इन चाँद से रोशन राहों पर
मुसाफ़िर कितने चले होंगे,
वह चाँद आज भी अकेला है मगर।
हमसफ़र कितने बने होंगे,
हमनवाई किसी से ना थी मगर ।
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मैंने अपने बचपन को सम्भाले रखा है अब तक,
वक्त लग गया मेरे समर्थ को मेरी चाहत पूरा करने में ।-
चहरें याद रखना भी कैसी मजबूरी है
नाजाने क्यूँ लोगों के नाम होते हैं ।-
उन ख़्वाब-जगे रातों को याद
रखेगा कौन ?
वो जो सूरज कि तपिश में पिघल गए,
उन इरादों का हिसाब
रखेगा कौन ?-
इंतेज़ार और उम्मीद पे ज़िंदा हैं,
कहीं वो आके दोनो ही ना तोड़ दें ।
चलो माना एक वहेम पे ज़िंदा हैं ॥-
दिल से शायर हूँ और पेशे से कायर हूँ
दिल के जज़्बातों को काग़ज़ पे लिख के
मिटा देता हूँ ।-
मेरी माज़ी की ख़ुशबू अभी भी मेरे साँसों में ज़िंदा है
शहर के हवा ने कभी मेरे दिल के गाँव को छुआ नहीं ।-
हाँ मैंने तेरी मेरी कहानी लिखी,
कुछ जज़्बात, कुछ जवानी लिखी ।
उन लम्हों को करके याद,
दिल जो मायूस हुआ,
तो मैंने एक नई शुरुआत लिखी ।-