वो ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं जिसमें कोई बवाल न हो वो जवानी जवानी नहीं लहू में जिसके उबाल न हो वो मंज़िल मंज़िल नहीं रास्ता जिसका तबाह-हाल न हो वो आदमी आदमी नहीं सीने में जिसके शेरदिल विशाल न हो
पता नहीं कौन सी किस्त चुकाई जा रही है कितनी किस्तें चुकाई जा चुकी है और कितनी बाक़ी है पता नहीं ये ज़िंदगी का क़र्ज़ कब उतरेगा कब ये ज़ंजीरे टूटेगी और आज़ादी मिलेगी
अपने सपनों पे यक़ीन रखना कोई चुरा न ले उन्हें चोर निगाहों से उन्हें छुपा के रखना सच होते है सपने कोई बड़ा सपना देखना बस हौसला न टूटे इस बात का ख़्याल रखना