किसी के कंधे पर हाथ नहीं रखा जिन्होंने
जरूरत उन्हें भी पड़ेगी किन्हीं चार कंधों की-
जिन्हें समंदर के खारे होने की शिकायत है
क्या उन्हें नहीं पता वही बरसता है
भाप बनके बादलों से बारिशों में
और प्यास भी बुझाता है वही पानी
अब किसी के खारे होने से
फ़िज़ूल न समझना उसे
क्यूँकि नमक भी वही से आता है खाने में-
ये गर्मी का मौसम बीत जाएगा
बरसात भी आ जायेगी
पर लोगो की जलन कम न होगी
वो हर मौसम बढ़ती जाएगी-
दुश्मनों की ज़रूरत नहीं
दोस्त है हमारे
हस्ती हमारी मिटाने को
तैयार है सारे
दुश्मनों को कहाँ कभी पड़ी थी हमारी
दोस्तों की फ़िक्र ने ज़ख्म दिए है सारे-
दूसरों को जगाने में
अपनी नींद ख़राब कौन करता है
पर कई आए और कई गए
अपनी नींद ख़राब की और गुज़र गए
लोग जागे नहीं तब से अब तक
कई युग बीत गए
जो जगाने आये थे
वो ही तर गए-
अपने दर्द का
किसे दोष दोगे
किसी का दोष नहीं
दोष है सिर्फ नसीबों का
दर्द किसी का दिया नहीं
ये दर्द है ज़िंदगी का दिया
ज़िंदा है तो दर्द है
दर्द है तो ज़िंदा है
भगवान को भी छोड़ा नहीं जिसने
तो इंसान की क्या बिसात है-
थोड़ा झूठ बोल जाते
तो हम भी बच के निकल जाते
सच बोलने का ख़ामियाज़ा
भुगतने से तो बच जाते
चलो आज से कम से कम एक झूठ तो बोलेंगे
हम भी अपने आपको सच्चा इंसान बोलेंगे-
प्यार किया था
या इस्तेमाल किया था
जो भी किया था उसने
कमाल किया था
दोष उसको क्यों दे भला हम किसी बात का
उसका नशा भी तो हम पर ही चढ़ा था
अब अगर गिर पड़े हम लड़खड़ाके तो उसको क्या
सम्भलने को कौन सा उसने हमको मना किया था
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