तुम्हारा ,
मुझसे बात करना ही काफी हैं ,
विषय तुम चुन लेना
मैं बस सुनता रहूँगा-
चंद लम्हे, वक़्त से चुराकर,
इस बार लाया हूँ
तुम्हे सुनाने को, कुछ किस्से,
उधार लाया हूँ
-
अखंड हूँ अनंत हूँ
अज्ञेय मायाजाल हूँ
अनादि हूँ, अजन्मा हूँ
मैं काल हूँ, मैं काल हूँ।।
कल्पनाओं से परे
एक ऐसा मैं आयाम हूँ
दृश् नहीं आभास हूँ
खुद अपना ही प्रमाण हूँ,
चल हूँ, अचल भी हूँ
बिन बोले भी वाचाल हूँ
सांसे सबकी गिन रहा
मैं काल हूँ, मैं काल हूँ।।
धर्म सारे रच दिए
ग्रन्थ सारे गढ़ दिए
नाचते जो तुम रहो
मदारी मैं कमाल हूँ
नश्वर इस दुनिया में
जलती हुई मशाल हूँ
रंगमंच पर सब देखता
मैं काल हूँ, मैं काल हूँ।।-
सुनो
मैं तुम्हारा साहिर नहीं,
इमरोज़ होना चाहता हूं..
तुम लिखती रहना मेरी पीठ पर,
अपनी उंगलियों से साहिर का नाम...
मैं उन उंगलियों की छुवन में पा लूंगा
अपनी अमृता ...-
दर दर भटकते रहे, एक आशियां बसाने को,
किस जगह को घर कहे अब, इसका ही पता नहीं-
दूर तलक निकल आए, ख्वाहिशों के पीछे,
एहसास ही नहीं रहा, पांव के छालों का..-
एक दिन जला दी जाएंगी सारी प्रेम कवितायें,
तानाशाहो द्वारा,
फिर लिखी जाएंगी सिर्फ
विद्रोह की कविता,
जब तक खत्म न हो जाए उनका साम्राज्य-
किसी से किसी के प्रेम की गहराई को मापने की कोई ईकाई नहीं,
उसको नाप सकती हैं,
तो बस प्रेम में लिखी कविता-