वो ज़माना गुज़र गया कब का
था जो दीवाना मर गया कब का
ढूँढता था जो इक नई दुनिया
लूट के अपने घर गया कब का
वो जो लाया था हम को दरिया तक
पार अकेले उतर गया कब का
उस का जो हाल है वही जाने
अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का
ख़्वाब-दर-ख़्वाब था जो शीराज़ा
अब कहाँ है बिखर गया कब का-
Some times I set on roof under the night sky with moon (depend on moonson) and says why you left me.
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कभी-कभी मैं चांद के साथ रात के आसमान के नीचे छत पर बैठ जाता हूं (मानसून पर निर्भर करता है) और कहता हूं कि तुमने मुझे क्यों छोड़ा-
संग मर नही सकते तो संग जी कर दिखाओ।
गर हैं, अब कोई उम्मीद हमसे तो एक बार फिर मोहबत कर के दिखाओ।।-
मुझे इश्क़ का सौख था।।
बेदर्दी ने छोड़ दिया हमे।
भांग का सौख था।।
जमने के डर से ,छोड़ दिया उसने।-
Din Raat Tumhen main Dekha Karun aankhon ko meri Yahi Chahat Hai
main kaed hu Teri lakiron mein Shayad Yahi Meri Kismat hai...
दिन रात तुम्हें मैं देखा करूं आंखों को मेरी यही चाहत है।
मैं हु कैद तेरी लकीरों में शायद यही मेरी किस्मत है।।-
बहोत शाम देखी।
पर ऐसी ना शाम देखी।।
तुम्हारी कसम तुम्हारी आँखों मैं,
रंक नही राख देखी।।।-