Piyush arya   (Acute psychotic)
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poem is getting updated
Joined 24 November 2019


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5 JUN 2022 AT 20:40

वो ज़माना गुज़र गया कब का

था जो दीवाना मर गया कब का
ढूँढता था जो इक नई दुनिया

लूट के अपने घर गया कब का
वो जो लाया था हम को दरिया तक

पार अकेले उतर गया कब का
उस का जो हाल है वही जाने

अपना तो ज़ख़्म भर गया कब का
ख़्वाब-दर-ख़्वाब था जो शीराज़ा

अब कहाँ है बिखर गया कब का

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2 FEB 2022 AT 9:09

उमीदों को बड़ी रखो।।
ज्यादा उमीद राख कर देती है।।

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26 JAN 2022 AT 18:26

Some times I set on roof under the night sky with moon (depend on moonson) and says why you left me.
°^°
कभी-कभी मैं चांद के साथ रात के आसमान के नीचे छत पर बैठ जाता हूं (मानसून पर निर्भर करता है) और कहता हूं कि तुमने मुझे क्यों छोड़ा

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22 JAN 2022 AT 11:45

कुड़ी केन्दी बेबी पहला जगुआर ले लो
फिर जिन मर्जी प्यार ले लो ®✓

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19 JAN 2022 AT 18:10

If she had no time.So let it be go...

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13 JAN 2022 AT 13:41

संग मर नही सकते तो संग जी कर दिखाओ।
गर हैं, अब कोई उम्मीद हमसे तो एक बार फिर मोहबत कर के दिखाओ।।

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12 JAN 2022 AT 14:21

मुझे इश्क़ का सौख था।।
बेदर्दी ने छोड़ दिया हमे।
भांग का सौख था।।
जमने के डर से ,छोड़ दिया उसने।

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11 JAN 2022 AT 9:47

Din Raat Tumhen main Dekha Karun aankhon ko meri Yahi Chahat Hai
main kaed hu Teri lakiron mein Shayad Yahi Meri Kismat hai...
दिन रात तुम्हें मैं देखा करूं आंखों को मेरी यही चाहत है।
मैं हु कैद तेरी लकीरों में शायद यही मेरी किस्मत है।।

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10 JAN 2022 AT 15:57

ज़रूरत और ज़रूरी
इश्क़ औऱ जिसम की तरह हैं।।

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7 JAN 2022 AT 7:30

बहोत शाम देखी।
पर ऐसी ना शाम देखी।।
तुम्हारी कसम तुम्हारी आँखों मैं,
रंक नही राख देखी।।।

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