अब लगता है ठीक कहा था गालिब ने
बढ़ते बढ़ते दर्द दवा बन जाता है...-
दूसरों को दर्द में देखकर बेइंतहा तकलीफ महसूस होती ह... read more
ख्वाहिशें ही कहां रही हैं अब वक्त के साथ
समझौतों में बदल रही है जिंदगी उम्र बड़ने के साथ।-
हम मिडिल क्लास फैमली के लोग हैं साहब
हमें अपने शौक और सपने खुदके दम पर पूरे करने होते हैं।
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एक सफर ही था जो मेरा अपना था
वरना अपनों ने मुसाफिर बनाने में कसर नहीं छोड़ी।-
जिंदगी बनाने में पूरी जिंदगी निकल गई
जब जिंदगी जीने का वक्त आया
तबतक जिंदगी जीने की आरजू मर गई...-
इन दिनों खुदसे ही खफा हूँ मैं
जो कभी न भुझे वो शमां हूँ मैं
बहुत सता रही हैं ये जिंदगी हर मोड़ पर
फिर भी जो टूटे से न टूटे वो तख्ता हूँ मैं।-
एक मिडिल क्लास व्यक्ति अक्सर जिंदगीभर समझौते करता है अपने सपनों से
वो भागता रहता है उम्रभर अपनी इच्छाओं का गला घोटकर
परिवार की जरूरतों को पूरा करने की खातिर
जिंदगी के एक अंतहीन सफर में ना जाने कितने अरमानों की बलि चढ़ाकर
अपने अंतिम पलों में वो यूं ही रुखसत हो जाता है इस बेजार दुनिया से कुछ अधूरी ख्वाहिशों के साथ...-
कहना बहुत कुछ है मगर सुनने वाला कोई नहीं
कर सकूं अपने दर्द को वयां ऐसे मेरे पास शब्द नहीं
जिंदा हूँ मैं लेकिन अब जिंदा नहीं
जो चाहा था वो कभी मिला नहीं...
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जब खो देता है इंसान खुदमें ही खुदको
तब जन्म होता है एक नयी आत्मा का...
तब उसे भय नहीं रहता जीवन मरण का
और न ही हार जीत का
उसे विचलित नहीं कर पाते विपरीत से विपरीत हालात
वो रम जाता है परम ब्रह्म में,
और लीन हो जाता है शून्य में...
तब शुरू होती है उसके जीवन की असली यात्रा
समझ आती है जीवन की सच्चाई
हकीकत में कोई अपना नहीं और सब अपने हैं का भ्रम
तब निमित्त हो जाता है व्यक्ति ब्रह्म में
और पाता है वो जो असल में सबको चाहिए।
ओउम् शांति-
जब थक जाता है इंसान अपनी जिंदगी से
तो वो खामोशी अख्तियार करता है उम्र भर के लिए...-