Pirate Writes   (दिपक पाण्डेय ©)
356 Followers · 368 Following

read more
Joined 24 May 2019


read more
Joined 24 May 2019
25 JAN 2022 AT 22:31

खुद गिरा, खुद संभल कर खडा़ हुआ हुं।
मजबुरियां थीं,
इसलिए थोडा़ जल्दी बडा़ हुआ हुं॥

-


23 JAN 2022 AT 20:10

भोले बन कर हाल न पुछो,
बहते हैं अश्क तो बहने दो।
जिस से बढ़े बेचैनी दिल की,
ऐसी तसल्ली रहने दो।।

-


21 JAN 2022 AT 22:46

तेरे करीब और तुझसे दुर होने के बाद।
जहा जहा साथ चले वो रास्ते ढुंढता हुं॥

अपने हाथों की लकीरों में रातों को अक्सर।
तेरे ही नाम-ओ-निशान ढुंढता हुं॥

लिखी ये किसने मोहब्बत-ए-जूदाई जिंदगी में।
न जाने कब से मैं, तेरी एक तस्वीर ढुंढता हुं॥

जिंदगी कि राहों में, कुछ इस कदर खो गया हुं।
के खुद को ही भूला और खुद को ही ढुंढता हुं॥

-


20 JAN 2022 AT 20:08

....

-


30 OCT 2021 AT 22:59

मै भी पापा जैसा बनना चाहता हूं।
हर मुसीबत से तन्हा लड़ना चाहता हूं॥

तपती धूप में जलकर, की है मेरी परवरिश।
मै भी उस धूप में जलना चाहता हूं॥

अपनी ख़्वाहिशें कुर्बान करके सजाई मेरी खुशियाँ॥
मैं अपनी ख़्वाहिशे, उन पर लुटाना चाहता हूं॥

अपनी परवाह ना करके सबकी परवाह करना॥
ये हुनर अपने पापा से सिखना चाहता हूं।

अपनी ख़्वाहिशों को दफन करना चाहता हूं॥
मै भी पापा जैसा बनना चाहता हूं।

-


23 OCT 2021 AT 16:36

धरें विराट रुप तो, जो चौदहों भुवन नहीं आंटें है।
सिमट गये तो, हनुमत के सिने में माता सहीत समाते हैं॥
ये मेरे प्रभू राम हैं,
इनकी महिमा को, हम भक्त कहां समझ पाते हैं॥

-


22 OCT 2021 AT 23:22

अब कौन रोज़ रोज़ ख़ुदा ढूंढे।
जिसको न मिले वही ढूंढे॥

रात आयी है तो, सुरज भी निकलेगा।
आधी रात में कौन सुबह ढूंढे॥

जिंदगी है जी खोल कर जियो।
रोज़ रोज़ क्यों जीने की वजह ढूंढ़े॥

चलते फिरते पत्थरों के शहर में।
पत्थर खुद पत्थरों में खुदा ढूंढ़े॥

-


13 OCT 2021 AT 21:48

नवरात्र के उपवास से मां प्रसन्न हो न हो,
लेकीन नारी के सन्मान करने से जरूर होंगी॥

-


18 JUL 2021 AT 6:09

पहले करते रहे फरेब,
अब महफिलों में शर्मसार कर रहे हो।
ये किस चलन कि मुहब्बत,
मेरे यार कर रहे हो॥

-


9 JUL 2021 AT 10:02

I follow simple rule ;
If someone's struggling and needs help,
I never wait for them to ask.

Just do it!!!
Be different 😉

-


Fetching Pirate Writes Quotes