गाँव की हर पगदंडी शहर की और जाती है ,
शहर के सभी रास्ते गांव की और नहीं आते ।
देखा है मैंने एक बार जो गया छोड़ के गांव ,
कभी वो नहीं आते है लौट के उसके पांव ।
चकाचौंध ने शहर की आज रोक लिया उसे ,
गांव की मिट्टी को धीरे धीरे भुला दिया उसने ।
खुरदरी जमीन गांव की अब कहाँ भाती उसको ,
मखमली बिछौने ने अब बाँध लिया है उसको ।
शहर की रोशनी में गुम हो गया है कहीं वो ,
गांव की अंधेरी गलियों को भूल गया है वो ।
बचपन खेला बीती जवानी बात वो बीती हो गई ,
बदलाव उसका देख माँबाप की उम्मीद ही टूट गई ।
गांव की वो पगदंडी कर रही उसका इंतेज़ार है ,
पता है कहीं दिल को मेरे , उसका इंतेज़ार करना बेकार है ।
फिर भी दिल को कहीं ना कहीं बंधी हुई एक आस है ,
शहर की और जाते हर रास्ते पे गूंजती मेरी एक आवाज है ।
मत समझना मेरे इन अल्फाजों को तुम कविता दोस्तों ,
शहर के रास्तों में गुम हुए लोगों को गांव की पगदंडी पे लाने का प्रयास है ।- Shagun
6 APR 2018 AT 11:27