Pinki Mavai  
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प्रेम में शर्माना कैसा 🐤
Joined 26 December 2023


प्रेम में शर्माना कैसा 🐤
Joined 26 December 2023
3 MAY AT 17:38

छोटा सा हमारा एक घर हो जिसमे हर शाम में तुम्हारे ऑफिस से लौटने का इंतज़ार करूँ...
मेहकता है हमारा घर तुम्हारे उस गज़रे के फूलों से जिन्हे लाके छट से तुम मेरे केशों में लगाते हो...
हर तरफ झूंट फरेब वाली दुनिया है, एक तेरा प्रेम ही सच्चा है...
क्या तुम हमारे हर वादे को पूरा करने का साथ दे पाओगे क्या...
मैं तो मुसाफिर हूँ तेरी हर महक का जहाँ कहोगे वहाँ ठहर जाऊंगी..

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3 MAY AT 17:26

अंजान थी इस ज़माने की बेरुखी से, अंजान सा मेरा इश्क़ था..
अंजान से ज़माने में तुम जान बन के आ गए..
मेरे टूटते हुए ख्वाबों को अपना बनाते चले गए..
अंजान सा मेरा इश्क़ था, उसे तुम एक नाम देते चले गए..

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27 JAN AT 22:52

संसार


क्या कमी रह गई श्री कृष्ण और राधा के प्रेम में, जो एक होकर भी एक न हुए
क्यूँ पकड़ी कलाई रुकमणि की श्री कृष्ण ने, जब राधा ही थी उनके तन मन में
क्या भगवान् भी हार गए इस संसार के भ्रम में..
या लाज़ रखी उनने रुकमणि की इस संसार में।

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27 JAN AT 22:33

विधार्थी...

यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
सर्दी हो या गर्मी हो उठ जाते है नियमित रूप से सबेरे वही किताबों के पुराने पन्ने खंगालने
कपकपाती सर्दी मे भागने लगते है अपने गुरुकुल की ओर
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
करता है सालों साल तपस्या एक नौकरी के खातिर
बताओ ऐसा धैर्येवान कहाँ होगा
माता छूटी पिता छूठा छूठ गया संसार उसका
बस गया एक नौकरी के खातिर किसी पराये शहर में
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....
पहला निवाला जो उसने खाया, कहीं नमक ज्यादा तो कहीं मोटी रोटी याद आ गई माँ के हाथ के खाने की झलक पड़ा आँख से आँसू
यदि विधार्थी सा संघर्ष हो तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे
माँ ने मनाई नही दिवाली दीप जलाये उसने खाली
क्योंकि अब उसका बेटा आता नही शहर से गाँव
फस गया शहर की बेरंग हवाओं में अब उसे अपने शहर के रंग नही दिखते
यदि विधार्थी सा संघर्ष होता तो बोलो तुम कहाँ तक टिक सकोगे ....

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25 JAN AT 7:41

चार दीवारे टपकती हुई छत से ओस की बूंदों का पानी
हाथ में कलम और लगे है अपनी कहानी लिखने यही ज़िंदगी है

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23 JAN AT 14:39

आज मेरे शहर मे धूप निकली है
ज़रूर तुम्हारे शहर में मौसम फीका होगा

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21 JAN AT 11:47

Dil to baccha hai ji
लेकिन प्रेम सच्चा है जी

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21 JAN AT 10:27

दिल के जज्बात लिखूं
या मन की व्यथा..

अधूरे अल्फ़ाज़ लिखूं
या पूरी कविता..
क्या लिखूं यह सोच रही हूं
शब्दो की भीड में
कही भावनाये दब न जाए
डर से सिमटे अल्फ़ाज़
कही खो न जाए..
दुख की बात लिखू
या सुख के गीत
क्या लिखूं यह सोच रही हूं
सत्य का अहसास लिखू
या झूठ का बाजार
मातृभूमि की पीड़ा लिखू
या इंसान की इंसानियत
क्या लिखूं यह सोच रही हूँ
आने वाले कल पर लिखू
या बीते पल पे लिखू

आंखों की भाषा लिखू
या शब्दो की परिभाषा
क्या लिखूं यह सोच रही हूँ
लब से निकलते बोल लिखू
या दिल के एहसास
मन के अंधेरे कोने में
बस उजियारा आ जाए
ऐसा कुछ लिखू सोच रही हूँ
... मेरी कहानी का एक छोटा सा पन्ना

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21 JAN AT 10:20

प्रेम...

खुद से तुम्हारी बातें करती हूँ
खुद से सवाल करके खुद को ही जवाब देती हूँ
न जाने ये कैसा इश्क़ है
तेरा वो परेशान करना याद आ रहा है
तेरा वो झट से मनाना याद आ रहा है
न जाने ये कैसा इश्क़ है....
मेरे जज़्बातों की शिकायत भी खुद से ही करती हूँ
मैं झट से मेरे आंसुओं को किताब के आखिरी पन्ने पर छुपाया करती हूँ
न जाने कैसा ये इश्क़ है... तीखा सा ये इश्क़ है..
कि जब तुम आओगे प्लेटफॉर्म नंबर २ पर
मैं दौड़ी दौड़ी आऊँगी और फिर से गले लग जाऊंगी
ना जाने ये कैसा इश्क़ है...
ऐसी कड़ाके की  ठंड में घंटो अपनी बक बक तुम्हे सुनाऊँगी और घंटों तक तुम्हारी बक बक
सुनजाऊंगी
ना जाने कैसा ये इश्क़ है...
जब तुम मुझसे पूछोगे कि तुम कैसी हो
अपने आंसुओं से सारी कहानी तुम्हे बताऊंगी
ना जाने ये कैसा इश्क़ है...
इस शहर के फुलवारों की बिक्री फिर रंग लायेगी
एक गुलाब तुम्हारा एक गुलाब मेरा ये बात फिर से रंग लायेगी
ना जाने ये कैसा इश्क़... मेरी कहानी का एक हिस्सा 🌚🌚

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