“ मेरे लिए तुम ”
( अनुशीर्षक में )-
मैं जो भी लिखती हूँ
ख़ुद की हर बात लिखती हूँ
कोई समझे ना समझे
अपने... read more
मोहब्बत की बरसात में, कुछ इस कदर मैं महकने लगी,
यूँ उल्फ़त-ए-इश्क़ में, अब हद से आगे मैं गुज़रने लगी,
रुख़ मोड़कर इन हवाओं ने, सरकाया जो आँचल मेरा,
पड़ी निगाह-ए-यार की, मेरी हुस्न-ए-हया बहकने लगी।-
मेरे आँखों का तुम इंतज़ार बन गए
मेरे होठों का तुम इज़हार बन गए,
तुम्हारी तस्वीर सजाई मन मंदिर में
मेरे जीने का तुम आधार बन गए,
मुझे सुकून आता तुम्हारे करीब
मेरे दिल का तुम करार बन गए,
मुझे चाहत बेशुमार है तुमसे
जब से मिले हो तुम प्यार बन गए
सँवर जाती हूँ तुम्हारे एहसास से
मेरे जीवन का तुम श्रृंगार बन गए।-
ये शाम ढलते ही, याद दिलाती है तेरी कहानियाँ,
मेरे दिल को भाती थी, वो सारी तेरी नादानियाँ,
दिल के किसी कोने में, संभाल रखा है मैंने सनम,
बेइंतहा मोहब्बत की, वो सारी तेरी निशानियाँ।-
मोहब्बत का एहसास हुआ दिल से तुम्हे अपना बनाकर
सुकून की नींद आती है दिल में तुम्हारा सपना सजाकर।-
~ मौजूदगी आपकी ~
इस क़दर ज़र्रे-ज़र्रे में है मौजूदगी आपकी
यूँ ज़िस्म से रूह तक है तिशनगी आपकी,
आपके लिए ही है ये एहसास-ए-मोहब्बत
जबसे जुड़ गई है मुझसे ज़िन्दगी आपकी,
मुझमें हमेशा कुछ ख़ास दिखता है आपको
कहीं मार ही ना डाले ये दीवानगी आपकी,
जब कभी थकी हारी महसूस करती हूँ मैं
एक जुनून भर दे मुझमें रवानगी आपकी,
आपके बिना तो बेमतलब है मेरा होना भी
दिल को महसूस होती है वीरानगी आपकी,
असर कर जाते हो मुझपे कुछ इस तरह
दिल को यूँ तड़पाती है नाराज़गी आपकी,
यक़ीनन वफ़ा है इस रिश्ते की बुनियाद
मुझे बेपरवाह बनाती है अवारगी आपकी,
कभी कुछ ना चाहा मेरी ख़ुशी के अलावा
‘गिरी’ को यहीं भाती है सादगी आपकी।-
यूँ एहसास-ए-मोहब्बत की आज़माइश करते हो
इश्क़ हम ही जताये ये भी फ़रमाइश करते हो,
है फ़ितरत तुम्हारी हमसे इश्क़-ए-इंतहान लेना
नाराज़ होकर हमसे मनाने की ख़्वाहिश करते हो,
मेरा दिल-ए-उम्मीद हुआ आजिज़ इश्क़-ए-जुदाई में
क्या तुम भी आँखो से आँसुओ की बारिश करते हो,
जब मुझसे दूर रह नहीं पाते तो मुझे सताते हो क्यूँ
लगता है मोहब्बत में भी तुम कोई साज़िश करते हो,
सबसे पहले तुम याद आते हो इबादत की हर दुआ में
क्या तुम भी ख़ुदा से मुझे पाने की गुज़ारिश करते हो।-
तुम्हारे जीवन के मार्ग में अब मैं नहीं आऊँगी
काटों की सैया पर मैं यूँ बिखर सी जाऊँगी,
यूँ तो मेरे हृदय में है अथाह प्रेम तुम्हरे लिए
जो बोध नहीं तुम्हे तो मैं अब क्या ही बताऊँगी,
तुम्हारे समक्ष निरर्थक है मेरी सम्पूर्ण मनोदशा
तुम्हे अंतर्मन की पीड़ा को अब मैं नहीं दर्शाऊँगी,
दुर्गम है ये जीवन मेरा तुम्हारी अनुपस्थिति में
मैं विरह की प्रवाह में हृदय पाषाण भी लाऊँगी,
निरंतर मिले स्नेह अपार तुम्हें तुम्हारे अपनों से
तुम दुःखी हुए तो मैं भी प्रसन्न रह नहीं पाऊँगी,
निःस्वार्थ ही रहा सर्वदा हमारा ये साथ प्रिय
यदि हूँ तुम्हारी अपराधी तो मैं क्षमा भी चाहूँगी।-
जो ठोकर खाकर चलना सीखा
हर परिस्थिति में ढलना सीखा
उन्हें ही जीने का हुनर आता है
जिसने बुरे वक़्त को बदलना सीखा।
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दिल लगाने वालो के लिए एक दिलदार चाहिए
दिमाग़ लगाने वालो के लिए दिल का व्यापार चाहिए,
यूँ हीं बदनाम नहीं होती ये मोहब्बत की गलियाँ
धोखेबाज़ों से भरी इस दुनियाँ में वफ़ा-ए-प्यार चाहिए।-