वैधव्य की कालिमा केवल श्वेत वस्त्रों से नही धुलती
उसे चाहिए गंगा का साथ
इसीलिए अपनों के ही हाथ
विताडित करते हैं
काशी में देकर वनवास
ये हरीतिमा से अकाल विच्युत तुषार आवृत्त ठूंठ
सहते हैं जीवन भर धिक्कार
करुण वेश करुणतर जीवन
लिए फिरते हैं घाट घाट
मृत्यु के लिए
स्नान
जप
पूजा
आराधना
हे काशी.....
मोक्ष के नाम पर और कितनी बलि लोगे
- Piyush Mishra