और इक शनिवार
जब तुम मुझसे मिलने नहीं आ पायी थी
अपनी सहेली के हाथों
एक गुलाब और इक चिट्ठी भिजवायी थी

अब भी शनिवार को
मैं तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
तुम... तुम्हारी चिट्ठी.. कोई नहीं आता

मैं अपने ही बाग़ीचे से इक गुलाब तोड़ लाता हूँ

- Piyush Mishra