पीयूष मिश्रा   (Piyush Mishra)
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यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016


यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016

'Bahar' mein nahin hai!





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कुछ ऐसे मुझसे वो मिल रही है
कि जैसे मुझको भुला चुकी है

ये दिल है कोई हवेली जिसकी
चमक-दमक में वीरानगी है

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सूरज कह रहा है विदा
दरिया के पाँव पर माथा टेके शाम पड़ी है
अम्बर फिर से लाल से नीला और फिर काला पड़ जाएगा-
ज़ख़्म के जैसे

दीवारों से घिरा हुआ मैं
एक दरवाज़ा ढूंढ रहा हूँ - दीवारों में

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दोनों ही भाग रहे थे
दुनिया से
एक दूसरे से
और ख़ुद से।
दोनों ही छुपा रहे थे प्रेम
दुनिया से
और एक-दूसरे से।
प्रेम- जो उन्हें बहुत पहले हो जाना चाहिए था
जब वो किसी अजनबी रिश्ते में बंधे नहीं थे
मगर तब वो मिले नहीं थे

वो उससे सुनना नहीं चाहती थी-
"तुम्हारी आँखों में डूब कर मर जाना चाहता हूँ मैं"
वो जानती थी- वो जीना चाहता है-मरना तो बस आदत है उसकी
वो कभी कहता नहीं था उससे
"आओ एक नज़्म सुना कर सुला दूँ तुम्हें"
वो जानता है- वो सोना चाहती तो रोज़ शाम ढलते ही वापस घर नहीं लौटती।

वो दोनों एक दूसरे से बात करना चाहते थे
मगर चुप रहते थे
दोनों छुपा रहे थे प्रेम
दुनिया से
और एक-दूसरे से।

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सुनो लड़की!
क्या अब भी डायरी में छिपा कर फूल रखती हो?
चलती राह आ जाए कोई पीपल तो सर को ढँकती हो?
कोई बच्चा जो दिख जाए मांगता भीख सड़कों पर तो रिक्शे से उतर जाती हो क्या?
लगा कर हेडफोन कानों पर अब भी गीत गाती हो क्या?
तुम्हारी रात का सपना कोई सुनता है तुमसे अब?
जो रोती हो कभी तुम तो कोई अब गुदगुदाता है?
कोई लिखता है ख़त तुमको बहुत तुम याद आती हो?
मैं तुमको याद हूँ क्या लड़की?

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वो लड़की लौट कर आए अगर तो बोलना उसको
वो लड़का आख़िरी दम तक तुम्हीं को याद करता था
तुम्हारे नाम उसने सर्दियों में ख़त भी लिक्खे थे
जिन्हें वो ख़ुद ही पढ़ता और इक बच्चे सा रोता था
वो लड़की लौट कर आए अगर तो ये भी कह देना
वो लड़का बेवफ़ा था आदतन ये सब वो करता था

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