हक से था उसका वास्ता मेरा, एक पल में रूकसत हो गया बिछाए थे फूल जिसने जमीन पे दूरियो के काटों में वो बदल गया कागज के जिन पन्नो में भर -भर के स्याही से लिखे अल्फाजो को कोरे कागज में यू बदल गया मै आजिज़ बैठी रहीं उस आरज़ू में वो मुझमें बिन चिगांरी लगाए यू ही जर-जर सा कर गया |
मेरे जीवन के आँगन में हर मौसम तू लाया है कभी बन अश्रु बारिश धारा की तो कभी मिट्टी सी सौन्धी महक लाया है कभी कड़कती धुप मिली तो कभी तेरी मीठी छाया हैं कई मौसम आये गए पर वसंत तो तू ही लाया है