Pihu Mehta   (पिhu💕)
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Joined 11 January 2018


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1 FEB AT 12:04

तेरी मुहब्बत का ग़म मेरा साकी है मेरी जान ..
अरे रुको जरा ...
टूटें दिल की मरम्मत अभी बाकी हैं मेरी जान ..
अभी तो हूई उन रूसवआइओ का जवाब देना हैं ..
मुझे खुद को भी तों इक मुक्कमल ख्वाब देना हैं ..
इश्क़ की नेमतों का हक़ अता करना बाकी है मेरी जान ..
टूटें हुए दिल की मरम्मत अभी बाकी है मेरी जान ..

मैं वो मुसाफिर हूं जिसने दर दर भटककर कुछ पाया ही नहीं ..
सच कहूं ...
तुम्हें मुझसे दिल लगाना कभी आया ही नहीं ..
कुछ सीख लो के उम्र सिखने की बीत ना अभी बाकी है मेरी जान ..
टूटें हुए दिल की मरम्मत अभी बाकी है मेरी जान ..

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21 JAN AT 11:55

मुझे बांध के स्याह रातों से ...
तुमने उजालों का दामन थाम तो लिया ...
पर क्या तुम जानते हों ...
हर उजाला अंधेरे की कोख ...
चिर के ही जन्म लेता हैं ...

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2 JAN AT 19:18

जहां से बहना सिखा वहीं पे लौट आई हैं ...
ये जिंदगी अपनें उद्गम स्थान पे चली आई हैं ...

कुछ याद रखने के लिए कुछ भुला जाना जरूरी था ...
कुछ भुला जानें के लिए कुछ बहुत यादें चली आई हैं ...

रख लेती मैं तुम्हें किताबों में संभालकर ...
तेरे इश्क़ ने हर बार एक यही कहानी दोहराई हैं ...


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20 OCT 2023 AT 15:20

भले रोती हूं बहुत पर बिखरती नहीं हूं मैं ,
हां मगर तेरे जाने से अब संवरती नहीं हूं मैं ...
रखती हूं लिहाज अपने दर्द का कुछ इस कदर ,
सहलाती हूं उसे दिल में संभालती नहीं हूं मैं ...

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10 AUG 2023 AT 18:14

वो चुभती भी थी
और चिल्लाती भी
मुठ्ठी भर प्यास के लिए
झल्लाती भी
कभी ओढ़ लेती
तपती हवाओं का आंचल
कभी सर्द रातों में
कंपकंपाती भी
जो होता दर्द तो
सहम जाती
प्यार से सहलाने पर
आंखों से मुस्कुराती भी
वो औरत हैं
जो सुष्टि का सर्जन तो
करती हैं पर अभिशापित
कहलातीं भी

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14 JUL 2023 AT 12:07

मरम्मत मांग रही हैं जिंदगी आजकल
पर हाथ बड़े तंग हैं मुफलिसी का जो दौर हैं

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13 JUL 2023 AT 17:41

किसी आवासीय योजना
सा हो गया हैं
आजकल प्रेम
प्रलोभन उन्माद की सीमाएं
लांघता हैं
ओर प्राप्त होता हैं
चलते ही खत्म हो
जानेवाले कमरें

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13 JUL 2023 AT 17:20

खरोंच के खुद को आदतन
रोने से क्या होगा
ज़ख्म हरे रहने की
रिवायतें जानतें हैं

स्याह रातों की तख्ती
पर जड़ें हैं बोझ कई
पर जिद्दी जुगनू भी
तेरे घर का पता जानतें हैं

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20 JUN 2023 AT 10:53

मेरे छोटे से घर में
कई रास्ते हैं
मेरे कमरे की
तरफ़ जानेवाली राह
अनमनी सी हैं
जाते ही मेज़ पर
रजनीगंधा की महक
ओर पास में पड़ी है
बुझी हुई आधी
सिगरेट
कालिन ओर पर्दों
की अपनी ही दास्तान हैं
ओर खिड़की से लगा
हुआ मैं
प्रतिक्षित हूं
आनेवाले खुद के नए
समय की चाह में

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20 JUN 2023 AT 10:26

प्रेम में आखिर में विरह
ही रह जाता हैं
विरह जो अपनी कूटनीति में
निपुण हैं
ओर हर विषयों में अव्वल
व्याकरण की तो बात ही
निराली है
व्यग्रता की आड़ी तिरछी रेखाएं
दर्द के व्यंजन

चाणक्य की कूटनीति
शायद भूला दी जाए
विरह की कूटनीति
नींद में भी याद
रह जाती हैं

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