फ़क़त “फरीदा”   (अबोध_मन//फरीदा©)
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Joined 2 July 2020


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Rabb ki Rahmatein Aur Apno ki Mohabbatein
Ta-umraBesabab Rahein Beshumaar Rahein..
Apki Umra ke kadam badhein zara aahista..
Khushiyon ke lamho'n se bhari ho zindagi..
Aur us ek ek lamhein me saal hazaar rahein..!
©abodh_mann

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ऐ! बिन ‘माँओं की बेटियों’ तुम को ये ख़याल रहे,
मोहब्बत इज़्जतों की पामाली से ज़्यादा कुछ नहीं है।

आदम के बेटों में अब न ‘युसुफ’ न ही ‘बिलाल’ रहे,
मोहब्बत ‘नफ्स' की बदहाली से ज़्यादा कुछ नहीं है।

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सवेरे को भी मिलेगी जल्द ही खुश-नूदी 'फ़क़त'...
तुम रात को ज़रा...
चाँद की झूठी रोशनी के असर से निकल आने दो...!

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जहाँ आबाद करने को,,,,
ज़हन बरबाद कर बैठे,,,,
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ये शिकायतें तकलीफ़ की..हैं ‘फ़क़त’ तक़दीर से,
एक पीर कह गए थे कभी..
बच्चे लकीरें उलझी तेरी बहुत...दुआ है रब आसानी करे।

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ग़ालिब की ग़ज़ल,,,,मीर के मिसरों पे वो मरता है,
'फ़क़त' हर्फ़-हर्फ़ उसे ही लिखे,,,,कुछ असर न करता है।

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रब्त तुझसे ग़ाएबाना,
गर हो यकीं तो परचम उठाना।

ख़्वाब पलकों आ बसा है,
कहीं दूर वादियों में हो इक ठिकाना।

संग मेरा इश्क़–ए–मेहरम,
है रब की ने’अमत ये आब–दाना।

सर्द और गुलों का मौसम,
तू पढ़े मेरे वास्ते चंद शेर आशिकाना।

तेरी नज़र से हर अक्स देखूँ,
कि कब मैं हूँ क्या मुझे तू ही बताना।

तेरा हर कदम बख्शे बलंदी,
कि मेरी जाँ हयात हो तेरी जावेदाना।

मेरी ज़बी ठहरा वो बोसा–ए–नम,
कि बाँहों का क़फ़स अंदाज़ वालेहाना।

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जैसे गिरते पड़ते ये सहर से दोपहर को ले आयी है,
ज़िंदगी कुछ यूँ ही शाम का सफ़र भी तमाम जाएगा,
कि अब जाने भी दे...
फ़क़त तुम्हीं अकेले नहीं कि जिस पर हादसे गुजरते हैं ।

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शब भर वो नींदों से बेदार फिरा करती थी,
इश्क़ ने हक़ मेहर में फ़िर इंतज़ार लिख दिया।

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