कहीं खामोशी कमरे में छाई रही
कहीं हृदयों के टुकड़े होते रहें
कहीं यादों की परतें खुलती रहीं
कहीं नयनों से काजल बिखरते रहें...
"और हम"
हम बस यही सोचते रह गए…
कौन पत्थर सा था, कौन था रेत सा,
कौन टूट गया, कौन था बिखरा सा।
किसके हिस्से में आई उदासी सी थी
किसके जीवन में छाई रुआँसी सी थी
कौन खुद को ही खुद से किया था जुदा
कौन बनकर के बैठा था किसका ख़ुदा
आह!!!!!
हम बस यही सोचते रह गए......
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सहजता से सहेज लिया सारी कल्पनाएँ
लिख दिया हृदय की सारी वेदनाएं
हैं कर्जदार उस प्रेम के हम
जिसके हिस्से में हम कभी नहीं आयें..-
माता-पिता को दूर करना
हमारे संस्कारों को झुठलाता है,
ओ नई पीढ़ी,,
मत भूलना जो बोयेगा,
वही लौट कर आता है।
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तेरी बाँसुरी की धुन में समाहित हैं
ब्रह्मा, विष्णु और महेश
तेरे सिवा सृष्टि में बचता नहीं कुछ शेष
भक्ति में डूबे मन को, तेरा सानिध्य मिल जाए
मात्र तेरे दर्शन से ही हर पीड़ा मिट जाए
राधे कृष्ण🙏🏻❤-
मुझमें छुपा है तेरा अक्स, ये जानता है तू
कदम रुक जाते हैं तेरे करीब आकर,
मेरा दिल रोज़ हारता है क्यूँ
मान लिया मैंने कि नहीं आता
मुझे मुहब्बत करना,,
पर सुनो,,
मेरी चाहतों की काली छाया में
मेरे खयालों का शिकार होता है तू-
मैं रिश्तों की रस्में निभाता रहा,
मेरी खामोशी में बस उसका संगीत है।
जुदाई तो थी,जुदा हो न सका,
मेरा हृदय बस उसके समीप है।
वो जो नसीब में कभी आई नहीं,
धड़कन में अब भी उसी के लिए प्रीत है।
छू ना सका मैं जिसे उम्रभर,
आज भी वो मेरे सबसे क़रीब है।
प्रेम की जाने ये कैसी रीत है
हार कर भी मेरी प्रेमिका की जीत है।-
तेरी आँखों में जो दुनिया है,
काश… मैं वहाँ की बाशिंदा होती...
हर अहसास तुझसे होकर गुज़रता,
तेरे ख्यालों में मैं जिंदा होती
तेरे भावों की माला में,
काश... मैं तेरी वृंदा होती…-
कभी खुद से भी पूछ लेता,
"वो क्यों इतनी खामोश रहती है?"
सुन .....
मैंने उसे देखा था,,
हँसते हुए,,हवाओं में भी खिलते हुए
आसमान में आज़ादी से उड़ते हुए
गीतों को गुनगुनाते हुए
मैंने उसे देखा था
तेरे नाम से आँखें चमकते हुए..
उन आँखों में काजल लगाते हुए
माथे पर बिंदिया सजाते हुए
पाँवों में पायल छनकाते हुए
मैंने उसे देखा था
तेरे नाम पर उसे टूट जाते हुए
अपना गम सबसे छुपाते हुए
एक ही जगह पर ठहर जाते हुए
खामोशी होठों पर सजाते हुए
हाँ,देखा है मैंने,,
उसे बिखर जाते हुए-
घटा घिरे मन पर, जब केशों की छाया लहराए,
प्रेम छलकता छवि से उसके, नयन झुका वो जब शरमाए।
पग-पग फूल खिले उस पथ पर, जिस पथ से वो जाए,
पवन भी उसकी चंचलता से, खुशबू नई सी पाए।
निकले रातों में जब वो, तो चाँद भी शरमाए,
तारों की लौ भी मंद पड़ी, जब रूप उसका मुस्काए।
चितवन में उसके आकर्षण है, वश में सब कर जाए,
बांध ले सबको एक झलक में, नयन जहाँ उठ जाए।
चाल में उसकी मृग की माया, बोली में रस बरसाए,
हँसी उसकी जब गूंज उठे, तो धड़कन तक मुस्काए।
वो जब झुके तो लगे धरा पर, चंद्र-किरण लहराए,
वो जब उठे तो नभ भी उसके चरणों में आ जाए।
अंग-अंग में सौंदर्य समाया, स्नेह सुधा बन जाए,
जिस पर कवि भी मौन खड़ा हो, शब्द स्वयं शरमाए।-