PG✍️  
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Joined 9 January 2022


Joined 9 January 2022
22 HOURS AGO

काश तू बैठे कभी मेरे बगल में
तुझे लिखता हूँ अपनी हर ग़ज़ल में,

तू पढ़े मेरे जज़्बात अपनी सुर्ख़ होठों से
लिखा है तेरा नाम नज्मों के पहल में।

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YESTERDAY AT 16:46

~ गाँव ~

क्या दिन गुज़ारे थे हमने अपनी गाँव में
वो हरे-भरे पेड़ों की ठंडी-ठंडी छाँव में,

सादगी में होती थी कभी ज़िन्दगी बसर
आज शहर की चकाचौंध बढ़ी भाव में,

खेतों की पगठंडी पर जो दौड़ लगाई थी
वो बचपन खोया ज़िन्दगी की पड़ाव में,

बड़ी शान से गाँव में घूम आया करते थे
बड़ा स्नेह मिला उन अपनों की लगाव में,

जिनके नाम से हमें जानते थे गाँव वाले
नकमस्तक होते थे दादा जी के पाँव में,

आज कितना भी आगे निकल जाए हम
कुछ कमी लगती ज़िंदगी के हर दाँव में।

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YESTERDAY AT 16:33

अपनी भावनाओं को मैं ह्रदय में उतारती हूँ
जीवन की हर बात मैं शब्दों में लिखती हूँ,

जब से मुझे कलम का सहारा मिल गया है
मन की स्याही कोरे काग़ज़ पर बिखेरती हूँ।

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YESTERDAY AT 16:11

इन निगाहों में क़ैद हमेशा तेरी तस्वीर है
मेरी जहन में तेरे क़िरदार की अकसीर है।

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YESTERDAY AT 15:57

–PG ✍️

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14 SEP AT 23:32

जैसे श्रृंगार के रूप में माथे पर बिंदी अच्छी लगती है
वैसे ही भारतीयों की जुबान पर हिंदी अच्छी लगती है।

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4 SEP AT 8:39

हे भगवान!

काश ये नया सवेरा
मेरे अंधकार जीवन में भी
कुछ नया उजाला ले आए।

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2 SEP AT 13:50

………

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31 AUG AT 21:31

बिखर कर इस क़दर इस दुनियाँ से हारे हम
छीन गया मेरा आशियाँ दर-दर के मारे हम।

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29 AUG AT 23:05

नकाबों के सहारे ख़ुद को गुमनाम कर गए
अपनी ही फ़ितरत ख़ुद वो बदनाम कर गए,

अब कोई क्या ही बिगाड़ेगा क़िस्मत ‘गिरी’ का
जब अपनी ज़िंदगी कान्हा जी के नाम कर गए।

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