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ॐ भूर्भुवः स्वः
Joined 3 July 2023


ॐ भूर्भुवः स्वः
Joined 3 July 2023
19 MINUTES AGO

काजू पिस्ता गुलाब–जामुन कोई मक्खन खिला रहा
जात पात का ढोल कोई मजहब मजहब चिल्ला रहा
संविधान समाज लोकतंत्र देश पर खतरा बताकर कोई
अपना अपना देशभक्ति कर्तव्य जनता को दिखला रहा

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22 APR AT 23:17

मयखाने का मिजाज तो देखो साकी
रंग कोई रहे उसूल बस छलकना रहा

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31 MAR AT 21:07

कंबख्त वो सबका होने चले है
मुझे डर है अकेले ना हो जाए

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28 MAR AT 13:17


तुम्हे देखा तो आसमां के सितारे नजर आ गए
छुपे थे जो सारे नजारें वो नजारें नजर आ गए
हम तो उलझ चुके है अब जुल्फों में आपकी
आपने होठों ने चूमा हम शराबी नजर आ गए

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18 MAR AT 19:32

संवेदनाओं के शिखर पर
कुंठा की ज्वाला जलता है
अरमानों को चिता बनाकर
ख्याल सीने में दहकता है

आंशुओ का दामन पकड़े
दर्द हृदय में बहता है
संकोचन की विवशता लेकर
शख्स मुखौटा पहने रहता है

व्यथा को माला बनाकर
अस्तित्व किंचित कर जाता है
दूसरों जैसा बनने में मनुष्य
कही का ना रह पाता है।

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16 MAR AT 20:25

मेरी लेखनी से
कहीं अच्छी है
तुम्हारी पाजेब की खनक
मै वर्ण जोड़ शब्द बनाता हूं
तुम पाजेब की खनक से
शब्दों को तोड़ देती हो
मै एक एक शब्द
कठिनाई से जोडूं
तुम्हारी प्रशंसा में
तुम चार कदम
सहजता से चलकर
मुझे मनमुग्ध कर देती हो
मै किंचित भयभीत नहीं
अपने हार से
मुझे सातों सुर सुनने मिलते
तुम्हारे पायल के झंकार से

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21 FEB AT 19:00

सूरज के आने से ना
चिड़ियों के चहचहाने से
घड़ी में सात बज जाने से
ना दिन चढ़ जाने से
मेरा दिन शुरू होता है
मां के पंखा बंद कर खिड़की
खोल 8 बजते घड़ी को 10
बज गया बताने से............

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3 FEB AT 12:14

ना तोड़ो दीवारें
बिखर जाएगी दुनिया
खुल गयी ज़ुबाँ
सहम जाएगी रनियां
जैसे चलता है तुम चलने दो यारों ...2
ज़ख्म गहरा है अब नमक ना डालो 2

...... Caption ......

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27 JAN AT 9:52

मुझपर रंग तेरा इतना गहरा है
मेरी ख्वाबों में तेरा ही पहरा है
रम गई हो सांसों में ऐसे सनम
आंखों मे तेरा ही तेरा चेहरा है
मिलती हो पल दो पल के लिए
घाव बनता जिगर पर गहरा है
रुक जाओ ना यही दिल में मेरे
देखो ये पल कितना सुनहरा है
ये वक्त थम जाए अब यहीं कहीं
हाथों में हाथ ले होंठ कह रहा है
मुकम्मल कर दो ख्वाहिश सनम
देखो साथ साथ नाम जऺच रहा है

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16 JAN AT 18:44

तुम्हे क्या मालूम मै कहां जाऊंगा
घाट चौराहा शहर या मर जाऊंगा
मेरी छोटी मोटी आदतों से वाकिफ
किसकी नकल पर ताली बजाऊंगा

घर होगा सूना उजड़ जाएगी दुनिया
छोड़के मुझको जब जाएगी मुनिया
किसे बुलाऊंगा हर छोटी बात में
बनाकर कोई जब लेजायगा कनिया

सोच मत इतना घड़ीभर प्यार करले
लौटूं जब घर शाम को गलें से भरले
जाने कितने दिन चलेगी यारी हमारी
मिरी खातिर बस एक निवाला धरले

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