Peeyush Bajpai   (© kaavyapeeyush)
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Joined 30 December 2019


Joined 30 December 2019
18 APR AT 19:44

सबमें, इतना बांटा, टुकड़ों में, मैंने खुद को..
अब समेट रहा हूं दुश्वारी से, खुद में, खुद को..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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13 APR AT 11:21

किसी को हजार गुलदस्ते गोद में..
किसी को एक पत्ता भी नसीब नहीं..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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10 APR AT 0:20

बहुत जी लिए सन्नाटे में अब शोर चाहिए..
इश्क उनसे ऐसा वैसा नहीं, घनघोर चाहिए..
यूं तो किसी को गलत कहना है निहायत आसान..
पर गलत को गलत कहने को बहुत जोर चाहिए..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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3 APR AT 13:17

इंसान से घिबली तो बन लिए..
अब वापस इंसान कब बनोगे..?

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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1 APR AT 7:17

दूसरों को छल के
स्वयं को बुद्धिमान समझने वाले
मूर्खों को भी
मूर्ख दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं...

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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31 MAR AT 10:12

बात-चीत तक करने के तरीके नहीं आते..
लखनवी होके भी तुम्हें सलीके नहीं आते..
इल्म तो होगा ही जो बोओगे वही खाओगे..
मियां आम के पेड़ पर पपीते नहीं आते..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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22 MAR AT 23:12

तेरे बाद किसी के पास ठहर जाना छोड़ दिया..
दिल लगाना, हाथ मिलाना और मुस्काना छोड़ दिया..

जिन गलियो में, जगहों में, जहां तेरा मेरा राब्ता था..
उन कूचों में मैने अब आना जाना छोड़ दिया..

जैसे हमको इल्म हुआ कि वापस न कभी अब आओगे..
सच कहता हूं उस दिन से आवाज लगाना छोड़ दिया..

ज्यों ही बच्चे बड़े हुए, अपने पैरों पर खड़े हुए..
फिर हमने उनको अपने किस्से सुनाना छोड़ दिया..

जाने कितने लोगों को अपनी धुन पर नचवाया..
दिल जबसे टूटा हमने राग बनाना छोड़ दिया..


-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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22 MAR AT 23:04

अपना मन किसी को सरेआम मत देना..
आगाज तो ठीक है अंजाम मत देना..
जिसको संभालने की तमीज़ न हो..
उसके हाथों में इंतजाम मत देना..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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22 MAR AT 22:56

अब खुशी भी नहीं होती, ग़म भी नहीं होता..
हंसता ही रहता हूं अब बिल्कुल नहीं रोता..
उसने तो कोई कसर न छोड़ी थी मारने की मुझे..
भला कैसे जीता अगर मैं सुखनवर नहीं होता..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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16 MAR AT 17:26

अब खुशी भी नहीं होती, ग़म भी नहीं होता..
हँसता ही रहता हूं अब बिल्कुल नहीं रोता..
उसने तो कोई कसर न छोड़ी थी मारने की मुझे..
मैं कैसे जीता अगर ये अवलेखन नहीं होता..

-✍️पीयूष रंजन बाजपेयी 'नमो'
-© काव्यपीयूष

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