प्रेम
अनेकों बखान मिलेंगे प्रेम के यूँ तो..
पर क्या सच-मुच प्रेम उतना सुंदर है..?
कि जितना लिखा गया कविताओं में ,
कि जितना वर्णित है ग्रंथो में ,
क्युँ नहीं लिखा गया कि ...
प्रेम ने छीन लिया है किसी का आत्मविश्वास,
किसीके जीने की ईच्छा,
कर दी निर्मम हत्या किसीके बरखा में नाचने की ख़्वाहिश की,
धकेल दिया किसीको निराशा के गहन अंधकार में,
और सबसे निर्मम तो तब हुआ प्रेम
जब प्रेम नें कर ली चोरी किसी चंचल हिय की
और छीन लिए अधरों पर सजी मधुर मुस्कान.
क्या कभी लिखा गया कि
निर्मल हृदय का प्रेम में पड़ना
सौंदर्य नहीं एक त्रासदी है .-
अगर लिखूँ कि क्या है प्रेम
तो शायद ...
त्योहारों में होली के रंग,दीवाली की शाम सा रोशन है प्रेम
नदियों में माँ गंगा सा पावन है प्रेम
महीनों में हरा सावन है प्रेम
सूर्योदय सा नवीन, सजल है प्रेम
बालमन की तरह चंचल, निश्चल है प्रेम
इन्द्रधनुष सा सतरंगी है प्रेम
रंगों में पीला , लाल , शायद नारंगी है प्रेम
समंदर सा गहरा या लहरों का जुनून है प्रेम
बाँसुरी की ध्वनि सा मधुर, मंदिर का सूकून है प्रेम
जननी की शक्ति , इश्वर की भक्ति है प्रेम
पर्वतों का अभिमान ,धरणि का समर्पण है प्रेम
कवि की सुन्दर रचना , ऋषियों का तर्पण है प्रेम
जन्म सा आरंभ ,आकाश सा असीम, अनंत है प्रेम
अग्नि सा ज्वलंत , मृत्यु सा अटल, अंत है प्रेम-
मेरे बिना गुज़ारी उन्हें कोई शाम नहीं खलती
न करदे ख़ता ये निगाहें,बस इसलिये मैं घर से नहीं निकलती
ढेरों ख्वाब लिखे भेजें हैं ख़त में मैंने उन्हें
लिखेंगे वो कभी कोई ख़त मुझे इस उम्मीद में मैं पता नहीं बदलती-
चूम लेती तेरी ललाट
जैसे चूमती है बरखा भू को हर बार
पिरो लेती तेरी आँखों से गिरते आंसुओं से मोती
और भर देती इन सजल आँखों में प्यार,
...बस ढ़ेर सारा प्यार
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पिया मिलन को बरसत सावन
नजर न आवत बैरी साजन
बरखा के बस में ब्याकुल होई
ज्यों नाचत है बन में मोर
बावरा मन तोहरी राह तकत है,
वन उपवन मधुबन चहूँ ओर...
पिया देख त हमरी ओर ...
...
काहे तड़पावत है बैरी साजन
बीत न जाए अबके सावन
तोहरी प्रीत को तरसत है मन
बिरहा सही न जात है साजन
बावरा मन तोहरी राह तकत है,
वन उपवन मधुबन चहूँ ओर...
पिया देख त हमरी ओर ...
देख त हमरी ओर...-
तेरी खिदमत मे खड़े ऐ ख़ुदा,उनकी ख्वाहिश हर बार करेंगे
पर तू लिख देना उनकी क़िस्मत मे सच्चि मोहब्बत
उनके मुस्कराहट मे मिटने वाले हम,
उन्हें ख़ुश देख कर सब्र हर बार करेंगे-
ज़रा मुस्कुराना फिर नादान बन जाना
चार कदम चल के फिर अनजान बन जाना
जज़्ब कर लेंगे सारे जज़्बात हम एक बार फिर
पर सुनो ,
तुम आना,मुस्कुराना, और फ़िर, नादान बन जाना
चाहे बेवफाई के सारे इल्ज़ाम लगाना
जो मर्ज़ी हो तुम्हें, सारी सज़ायेँ सुनाना
कब तलक यूँ तस्वीरों से शिक़ायत करें तुम्हारी
सुनो,
तुम आना,मुस्कुराना, और फ़िर, नादान बन जाना-
रंग दे तुझे जो मेरे रँग में
मैं वो गुलाल वो अबीर खोजती हूँ
बाँध दे तुझे जन्मों जनम मेरे संग में
मैं हथेलियों में अपने वो लकीर खोजती हूँ-
हर बार जो इन्तज़ार लिख देता है तू मेरे हक़ में ऐ खुदा
अरे यार से मुलाक़ात, मेरा भी जी चाहता है
तू ही कह कब तक सब्र करे बेसब्र दिल आखिर
महबूब को देखना चाहना और चूम लेना , मेरा भी जी चाहता है-
तेरे ख्वाबों में गुज़ार दी जानें रातें कितनी
तेरे ख्यालों में गुम कर ली ख़ुद से बातें कितनी
कभी खोलोगे जो बंद खिड़कियाँ तो होगे रूबरू
की अल्फाजों मे कैद भेजीं है तुम्हें ज़ज्बातें कितनीं-