तुझे हक़ है रूठने का, मगर इतना भी ना रूठना की मना भी ना सकूं,,, मेरा हाल गैरों को तो बता नही सकती, तू भी इतना दूर ना हो कि तुझे दिल के ज़ख़्म दिखा ना सकूं,,,,
हमारे भाग्ये में सबकुछ है... बदनशीबी दर्द गम ज़ख़्मी सा एक दिल एक बेरहम हमदम! कुछ रिश्तों के क़ातिल रिश्तेदार बोझिल सी ज़िन्दगी थके हुए क़दम!! हमारे भाग्ये में सबकुछ तो है अब तो कुछ नया सितम दो तुम! तल्ख सी सांसे भी आती जाती है और खुदा भी मेरा जरा है बेरहम!!
लोग अल्फ़ाज़ लिखते है इसीलिए लाज़वाब लिखते है! हम तो फ़क़त ग़म ओर ज़ख़्म लिखते है और बेहिसाब लिखते है!! कभी खुदको अश्क़ों का दरिया दरिया तो कभी ज़िन्दगी को मझधार लिखते है! अब करले सितम ज़माना हम हर पल में खुद को तैयार लिखते है!!