ना किया कुछ उसने बड़े लाड़ो से पाली जा रही थी, जो माँ के यहां थी रानीबेटी आज बहु बनने जा रही थी, जिसे न थी कोई फिकर वो अब जिम्मेदारी निभाने जा रही थी ! माँ के दिए संस्कारों और नुस्खको से एक घर सँवारने जा रही थी , जिंदगी उस लाड़ली की अब बदलने जा रही थी !
ये क्या मैं खोज रही हुँ खुद ही कंही खो गयी हुँ ! बिन बरसे ही बारिश के कैसे पूरी भीग रही हु ! चिंत्य के इस पौधे को बिन पानी ही सींच रही हु ! क्या है मृत्यु क्या है जीवन बिन जाने ही भाग रही हु!
हर गली नुक्कड़ चौराहे उसकी इज्जत लुटती है, फिर भी वो चुपचाप खड़ी दरवाजे पीछे छुपती है , कहीं उसी दरवाजे पीछे उसकी अस्मत बिकती है, हद से ज्यादा बर्दास्त की सीमा रखती है ! ना जगा उसके अंदर की औरत वही.... "महाकाली" का रूप भी रखती है !