कैसे कहूँ मैं तुमसे की कितना याद करती हूँ;
नींद के बिस्तर पर तेरे ही ख़्वाब बुनती हूँ।
यादों को सिरहाने रख ओढ़ कर पलकों की चादर
अश्कों की क़लम से जैसे तेरा ही नाम लिखती हूँ;
हौसलों की पतंग पर,हिम्मत का मांझा बांधकर
एकाकी की डोर संग थोड़ा और उड़ती हूँ।
संयम की साँसों के संग मैं लगातार चलती हूँ,
खुद ही अपने अक्स से जैसे हर रोज़ लड़ती हूँ।
सपनों और हक़ीक़त के द्वंद में
हक़ीक़त जीत ही जाती है
कोशिशें बेमिशाल करती हूँ सपने जिंदा रखने की
मैं हर बार हार जाती हूँ;
कभी मन को समझाते तो कभी दिल को डांटते फिरती हूँ,
कैसे कहूँ मैं सबसे कि मैं खुद से झूठ कहती हूँ।
वो फ़िक्र वो ख़्याल वो अपनापन
वो थोड़ी सी मनाही और रूठा मन,
संजो कर इन्हें मैं;
दिल के पास रखती हूं,
कि कैसे कहूँ मैं तुमसे की कितना याद करती हूँ;
नींद के बिस्तर पर तेरे ही ख़्वाब बुनती हूँ।
-
✍️✍️passion
self motivated
proud to be a navodian