एक ख़्याल
इश्क़ की क्यों इतनी अलग सी दुनियादारी है? क्यूँ ये समाज के महजब, रीती-रिवाज़, पसंद ना पसंद, छोटे-बड़े, अमीरी-गरीबी और ऊंच-नीच वाले पैमानों से है यूँ बेख़बर, क्यूँ इसने बनाए है इनसे इतने फासले और मैं भी कितना पागल था ना, जिससे ख़ुद को महफूज़ रखना चाहता था, जिससे इतनी दूरियां बना रखी थी, जिससे मैं मिलना ही नहीं चाहता था, कब उससे घुलता रहा, कब उससे यूँ मिलता रहा कुछ पता ही नहीं चला| फिर जब पता चला तब तक काफी नहीं बहुत देर हो गई थी| यार कुछ पता ही नहीं चला कि हाँ यहाँ पे थोड़ा रुकना होगा कि हाँ यहाँ पर हम दोनों को संभालना होगा| कभी कभी तो लगता है कि हम दोनों के सामने ये रुकने और संभलने वाला फेज आया ही नहीं और आया भी तो कब हम दोनों इस बात से इतने बेख़बर हो गये| फिर बस इतना सोचता हूँ कि काश हम वही पे सब कुछ संभाल लेते या रोक लेते तो शायद सब कुछ ठीक होता| क्योंकी अब बात सिर्फ़ मेरे दिल की नहीं है उस दिल की भी है, जिसका ख़्याल मैंने हमेशा ख़ुद से ज़्यादा रखा, जिसे हर पल मेरी जरुरत है, जो अभी मेरा दीवाना है| ये सब इतना मुश्किल क्यों होता है और जिसको कभी सोचा भी नहीं इस दिल ने उसी को क्यों चाहा| अब तो आँखों के सामने एक आईना होता है जिसमें खूबसूरत, मासूम और प्यारा सा वो चेहरा होता है|
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