અચ્છાકુંવર કાંતિમયનું
મણી દૈવી રૂપમાં સમાઈને
મોક્ષ પામે એજ અભ્યર્થના
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अभी वक्त के इम्तिहाँ और भी हैं।।❤
હરિ કંચનનું મોહ જગ છોડી નિસર્યું
બટુક ધન દિનેશ્વરી ને આલિંગવા
મહા સુદ પૂનમ દિવસે "મોજ" બન્યું એકલવાયું
સુની થયી પોળ, સુનાં થયાં આંગણાં
હવે કેમ કરી સહિયે વસંતનો ખાલીપો!💔
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मासिक धर्म से शर्म या आपत्ति क्यों?
यदि स्त्रियां मासिक धर्म निभाती है
और उसे पूरी स्वतंत्रता से अपनाती है
तो पुरुष को भी स्त्राव होता है
उनका भी तो वीर्य स्खलन होता ही है
उन्हें कोई क्यों रोकता नहीं?
कोई क्यों टोकता नहीं?
ताकि वे मर्द है ?
अगर मर्दानगी दिखानी है तो सबसे पहले
मासिक धर्म को मानसिक विपत्ति ना बनाए
अगर देवी की पूजा करते हो
तो वे देवियां भी यही दौर से गुजरती है
हम सब उनका वरदान है
इसी लिए मासिक को धर्म कहा जाता है
वीर्य स्खलन से नहीं शरमाते तो इनसे क्यों?-
કહેવું જરૂરી નથી દરેક સંબધનું શું છે મહત્વ જીવનમાં. ક્યારેક કોઈ સંબંધ કોઈની ખુશી માટે પણ જીવી જવાય છે !
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કહી દીધું છે મન ને ,
માની જવાનું
જીદ મૂકી ખોટી ,
કયારેક હારી જવાનું ...-
शामें ख़ाली दिलोंका बसेरा होता है
राग मधुवंती के आलाप सी
तन्हा, अकेली बीत जाती है
ना जाने कौनसे फ़िराक़ में,
किस राह में,
प्रतीक्षा की कलाई पकड़े पूरी शाम
कतरा कतरा सी बहती है
कोरी रैना ऐसे ही लौट जाती है
आधी सी, अधूरी सी।
अकेलेपन में कोई
हंगामा बरपा भी नहीं होता
विरह की शहतूत,
प्रेम रंग की और तरसी होती जाती है
दर्द अब दवा सा काम करने लगता है
एलिया और फ़राज़ की गजलें
शामको हमेशां मादक बना देती है
मानो कोई अपना
मृत्यु होनेके बाद भी
वो पास ही रहता है
ऐसा अहसास होने लगता है
शाम का हाल, उसका ऐब
अक्सर सोचने पर मजबूर करता है
और उसका जवाब ढूंढने में
रात बैरन हो जाती है।-
राहतें, चाहते, आहटें आज भी वही है,
रोनकें, बंदिशे, हसरतें आज भी वही है।
शोहरतें, मोहबतें आज भी वही है,
हालांकि, जो था, जो है, आज भी वही है।
मुनासिब सब हो नहीं सकता इस रंज-ओ-ग़म में
मुकम्मल जो हुआ है, वो आज भी वही है।
शायद यहीं पर है हमारे कर्मों की दास्तां
अजीब दिल तन्हा,आवारा, बेचारा
आज भी वही है।-