हाँ एहसास है दिल को मेरे.. हमारा एक होना तकदीर में नहीं, फिर भी मैं उसे बेपनाह चाह रही हुँ! हाँ, मेरे इन हाथों में उसके नाम की लकीर तक नहीं, फिर भी मै उससे बेहिसाब मोहब्बत किये जा रही हूँ!
ज़ालिम हर दफा यह कहकर छेड़ा करता है वो कि, मुझे उससे मोहब्बत नहीं है। अब कैसे बताऊं उसे कि, जब कभी वो मुझसे दूर जाने की बातें किया करता है, तो ना जाने क्यूं,मेरे हाथ पैर खुद-ब-खुद ही ठंडे पड़ जाया करते हैं। अब कैसे बताऊं उसे कि, जब कभी वो मुझसे रूठ जाया करता है, तो ना जाने क्यूं, उसकी वो नाराजगी में दम मेरा घुट जाया करता है। सुनो अब और कैसे बताऊं मैं कि, तुम्हारा बेवजह खफा होना भी कमबख्त मेरी जान ले लिया करता है।।
इस कदर तोड़ा है उसने, कि खुद को खुदसे जड़ा भी नहीं जा रहा। इश्क की ऱवानियां भी कुछ यूँ उलझी पड़ी है, कि इक बार फिर उस गली मे रूख खूद-ब-खुद ही है मुड़ा जा रहा।।
बखूबी जानता है वो नहीं हूं मैं उसके नसीब में, फिर भी उसकी चाहत दिन-ब-दिन बेहिसाब होती जा रही है। कभी-कभी दिल कहता है रोक दू उसे, मगर उसकी बेपनाह मोहब्बत के आगे किस्मत भी नाकाम होती जा रही है।।
काफी वक्त लगा दर्द को भुलाने में या यूं कहूं उसे छिपाने में, और उसने इक पल भी नहीं लगाया.. मेरे जख्म को फिर इक दफा हरा करने में। वो कहता है तुम्हारे हिस्से आंसू ही आए ये मैंने मांगा तो नहीं , मेरी क्या खता, जब तुम्हें दर्द से फुर्सत ही नहीं।
हजारों ख्याल दिल को सता रहे हैं, यूं बेवजह न जाने क्यूं ये मुझे तड़पा रहे हैं। जो मेरा हो नहीं सकता उसे पाने की बेपनाह चाहत है, जो मेरे लिए दिन रात एक कर बैठा है न जाने मुझे उससे कैसी बगावत है। जाने कैसा यह किस्मत का लिखा है.. जो पास है मेरे वो हर पल हमारे दरमियां दूरियों से मुझे नवाज़ रहा है, और इक वो जो पास ना होकर भी मुझे बखूबी नज़दीकियों का एहसास दिला रहा है। जाने कैसा यह छाया बेबसी का आलम है.. मुस्कुराता हुआ यह चेहरा छिपी इसके पीछे हकीकत से वो बेखबर है, ऐ खुदा कह देना आखिर वो शख्स ही तेरा हमसफर है।
शिकवा है ये कि मुझे हर दफा अनसुना किया है तूने, तू ही बता क्यूं तुझको पुकारू फिर आज मैं। कई दफा कोशिश की तेरे आगे आँखे मेरी नम हो जाए, मगर तू ही बता कैसे पलकों में कैद बैठे आँसूओ को बहाऊ मैं। तेरे बिन बताए तूझे समझा है हरपल मैंने, तुने कहा जो किया है मैंने, शायद मशगूल थी मैं जो बेहद चाहा है तूझे मैंने । मगर ऐ खुदगर्ज फिर किस बात का गिला तू बैठा है दिल में दबाए, हर्ज नही मुझे कि जोगी कर दिया तेरे इश्क ने मगर फिर भी तुझसे सूकून न खूद को दे पाए। संजोयी थी जो तस्वीर दिल मे तेरी अब तो वो भी टूट गई है, तेरे अऩा के आगे मेरी जिन्दगी मुझसे ही रूठ गई है। बेपनाह मुहब्बत की थी तुझसे मगर गालिब तुम तो मुहब्बत के काबिल ही न निकले, खैर इश्क मेरा पाक था, मगर तुम तो तमाम कोशिशो के बावजूद भी बेजान निकले।
दुनिया-दारी से थक चुकी है अब ये आपकी बेटी, ये झूठी मुस्कान इससे अब और नही संभाली जाती। सारी इच्छाएँ अब तो खुद-ब-खुद मर चुकी है, पापा,अब तो किसी से जिद्द करने की ख्वाहिश तक दिल मे नही आती।