Pawan Vishwakarma   (stupid_me)
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The story, i can't ever tell, the 'time', you'll never have been to listen..
Joined 24 February 2021


The story, i can't ever tell, the 'time', you'll never have been to listen..
Joined 24 February 2021
26 NOV 2022 AT 15:21

कहीं दूर सर्द रातों को,
हम फिर से मिला करेंगे।

जैसी बातें तुमसे की थीं
उस तरह से गिला करेंगे।

ये दुनिया का दस्तूर,नहीं
है ज़रा गवारा हमको।

जिस तरह से टूटा बंधन,
उस तरह से तुमसे जुड़ेंगे।

कहीं दूर सर्द रातों को,
हम फिर से मिला करेंगे।

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23 NOV 2022 AT 14:55

तुम तन्हा हो, खामोश हो, इतनी उदास क्यूं हो?
तुम गुम हो, यहीं हो, फिर मेरी तलाश क्यूं हो?

बेचैनियों में चैन ढूंढती फिरती हो, पता नहीं क्यूं?
जो रातों से दर्द बांटती हो, इनकी आस क्यूं हो?

मुझे जानना है, आख़िर क्यूं हो इस तरह की तुम?
न संग हो, ना आम हो पर इतनी ख़ास क्यूं हो?

न शब्दों से बिलक्षित, फिर किसी की अल्फाज़ क्यूं हो?
ना आडंबर, ना दिखावा फिर रिवाज़ क्यूं हो?

कभी वक्त गर मिले तो हमसे बताना ज़ारा!
कि तुम दूर नहीं, पास नहीं, पर एहसास क्यूं हो?

कभी देखा नहीं कायदे से तुम्हें, फिर
इस उलझे हुए मन की अरदास क्यूं हो?

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22 NOV 2022 AT 10:15

कहीं उन कोरे पन्नो पर मैं कुछ अल्फाज़ लिखता हूं।
कभी मैं टूटे मन के टूटने का राज़ लिखता हूं।
मेरे लफ्ज़ों में तुमको कमी दिखे तो चौंकना मत,
मैं टूटे फूटे लफ्ज़ों से ही पूरी क़िताब लिखता हूं।

लिख दूंगा ज़ारा तुझे कहीं उन टूटे हुए ख्यालों में,
खींच लूंगा तुझे कहीं उन बिखरे हुए सवालों में,
इन बिखरी बूंदों से ही महज़ जवाब लिखता हूं,
कहीं उन कोरे पन्नो पर मैं कुछ अल्फाज़ लिखता हूं।

ज़ारा तू कहती है, तुझे कुछ लिखना अच्छा लगता है,
ताज की तरह श्वेत वर्ण सा दिखना अच्छा लगता है।
तेरी बातों से मुखबिर होकर गुलजार लिखता हूं।
कहीं उन कोरे पन्नों पर मैं कुछ अल्फाज़ लिखता हूं।

तू हंसती रहे, सो तुझको मैं रस्म-ए-रिवाज़ लिखता हूं।
मैं मेरा अक्स समझ के खुद को तेरा साज़ लिखता हूं।
हां मैं टूटे लफ्ज़ों से तुझको हर बार लिखता हूं।
कहीं उन कोरे पन्नों पर मैं कुछ अल्फाज़ लिखता हूं।

कभी मैं टूटे मन के टूटने का राज़ लिखता हूं..

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4 JUN 2022 AT 9:05

इन दायरों में रहकर खुद पे क्या तरस खाना,
मुझे इस जंजीर से निकलकर इन दायरों पे तरस खाना है..

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18 MAY 2022 AT 15:55

तेरा देखकर यूं मुस्कुराना, सिर्फ शरारत तो नहीं,
नज़रें दिल पर चलाना, सिर्फ कयामत तो नहीं,
चाहता है मन ये छू ले तुझे नज़रों से, ऐ काफिर!
तुम्हें देखने से हो जाए, वो सिर्फ बगावत तो नहीं..

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12 MAY 2022 AT 12:25

तेरी नज़रें पढ़ सके जो, यहां वो नज़र तो नहीं,
तेरी तारीफ़ लिख सके, यहां वो क़लम तो नहीं।
तेरा मन पढ़ना किसी के बस का नहीं यहां, ऐ दोस्त!
तेरे तहज़ीब को संभाल सके, यहां वो सनम तो नहीं।

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11 MAY 2022 AT 10:26

You'll have to be fine, you need to stay.
If you're in trouble, then please explain.
I'll do everything, I'll do that what I can.

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10 MAY 2022 AT 12:03

मैं तारतम्य,
तुम तरंगदैर्ध्य।

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9 MAY 2022 AT 18:05

जाने क्या बात थी उसकी नज़रों में, देखा उसको तो मन ये ठहर सा गया,
कितनी खुश्बू घुली थी हवाओं में, छुआ उसने जो मौसम महकता रहा,
थी कशिश भी कहीं उन इशारों में, सोच कर मन ये थोड़ा सहम सा चला,
चाहा दीदार करना जो हमने कभी, पास आया वो, आके बहकता रहा।

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9 MAY 2022 AT 17:38

है भरोसा हमें, यूं हर उस शख़्स पर,
साथ छोड़े नहीं, गर कठिन हो डगर।
साथ होगा न वो, स्वार्थ जिसमें भरा,
हमसफ़र है वही, तय करे संग सफ़र।

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