है रक्त तिलक निज भाल पे अब,
आँखों में क्राँति की ज्वाला है।
मन जाग उठा रण चंडी बन,
ग्रीवा में अब रिपु मुंडमाला है।
क्या बांधेंगे? मुझको-तुझको ये
रेशम की डोर !, हम ज्वाला हैं।
लय बद्ध हो या, हो प्रलयपूर्ण,
आँधियों ने, हमें तो पाला है।
हैं श्याम भी हम, व राम भी हम
भगत, गुरु, सुख, लाला हैं।
मत छेड़ मेरी तू तारों को,
तन तांडव, मन शिवाला है।
हैं शांत भी हम, व रौद्र भी हम
बस काल, हाल पर निर्भर है।
सींचेंगे भू निज लहू से भी,
गर मानस-मनसा निजभर है।
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