मामा के घर पहुंच कर हमने, रचा आज इतिहास।
बरसों से जो दबी हुई थी, पूरी हो गई आस ।।-
झुक गई थी वो पर, मेरे लिए वो खड़ी रहती थी।
मैं सुरक्षित रहूँ, उस उम्र में भी वो अड़ी रहती थी।।-
कैसे किसी के यहाँ, रोटियाँ बच जाती है?
यहाँ तो आलम है कि, अक्सर घट जाती है।-
है रक्त तिलक निज भाल पे अब,
आँखों में क्राँति की ज्वाला है।
मन जाग उठा रण चंडी बन,
ग्रीवा में अब रिपु मुंडमाला है।
क्या बांधेंगे? मुझको-तुझको ये
रेशम की डोर !, हम ज्वाला हैं।
लय बद्ध हो या, हो प्रलयपूर्ण,
आँधियों ने, हमें तो पाला है।
हैं श्याम भी हम, व राम भी हम
भगत, गुरु, सुख, लाला हैं।
मत छेड़ मेरी तू तारों को,
तन तांडव, मन शिवाला है।
हैं शांत भी हम, व रौद्र भी हम
बस काल, हाल पर निर्भर है।
सींचेंगे भू निज लहू से भी,
गर मानस-मनसा निजभर है।-
ज़िन्दगी तुझसे ख़फ़ा नहीं,
बस इतनी उम्मीद रखता हूँ।
कट जाए तू भी मुझमें,
बस थोड़ी सी सहूलियत से।
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खेल बैठे हम, होली नासमझी में,
रंग लाल थें, पर खूं अपना.......
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माता" का अंगुल थामे आज, स्वर साधिका जुदा हुई।
स्वर की देवी , स्वर कोकिला, माँ शारदे संग विदा हुई।।
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बिन धारण तप-ध्यान अधूरा, असि बिन मूल्यहीन म्यान।
धन-वैभव-ओज हीन सब , बिन विवेक, बुद्धि और ज्ञान।।-
सनक
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निगाहों में फलक रखता हूँ।
चाँद-सितारों की ललक रखता हूँ।
नाक़ामियाँ बढ़ाती हैं ज़िद को मेरी,
मंज़िल कदमो में हो, सनक रखता हूँ।
जुनून-ए-ज़हन कम न होने पाएं।
सर पर मैं "कफन" रखता हूँ।
विषधर बहुत हैं राह में अपने,
कुचलने का हरफ़न रखता हूँ।
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