पुराने गिटार पर फिर से तार लगाया हूं धूल में दबी डायरी से पुराने गीत निकाल लाया हूं बैठो तो फिर कुछ साथ गुनगुनाते हैं खामोश पड़ी आवाज को फिर सरगम से सजाते हैं कुछ तुम गा लेना कुछ हम गुनगुना लेंगे बेजान पड़ी इस महफिल को मिल कर साथ सजा लेंगे
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया याद आए मुझे जो हर पल ऐसी यादें दे गया गुनगुना रहा हूं जो आज सब उसी का दिया है तन्हाई में गुनगुना सकूं ऐसा एक गीत दे गया
कुछ कहते क्यू नही मेरे इतना कहने पर भी क्यूं अब तुम चिढ़ते नही शायद दिल भर गया है तुम्हारा या कोई और दिल को भा रहा है मेरी बातों में वो कशिश नही है तुम्हारा ये बर्ताव बता रहा है
जब बात तुम्हारी होती सुरों की महफिल सज जाती है जब साज़ तुम्हारी होती है चेहरों में खुशियां साफ दिखती हैं जब अल्फाज तुम्हारी होती है ये खुशबु यूहीं नही हैं हाथों में इक एहसास छोड़ जाती हो तुम