parvesh raghav   (प्रवेश)
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Joined 10 January 2018


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20 JUL AT 1:20

कल बीत गया 
आज गुजरता गया 
ठहरा कुछ भी नहीं...एक पल भी नहीं,
बातें खत्म होगई
लब खामोश होगए 
आंखे देखती रह गई 
तुम रूखे भी नहीं... एक पल भी नहीं,
बादल आए शाम में 
बारिश लाए साथ में 
आंगन बारिश से भीग गया
तुम्हारी आंखों में नमी भी नहीं... एक पल भी नहीं,
बेमतलब की बात 
बेबात का विवाद 
बेहिसाब का वहम 
किसी ने सोचा ही नहीं... एक पल भी नहीं,
सांसे भी हैं मरा भी नहीं 
दर्द जिंदा है सीने में कहीं 
कोसता मुझको है तुमको नहीं 
सब लुटा दिया देखा भी नहीं... एक पल भी नहीं ।

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25 JUN AT 15:07

मेरे दिल के पास मेरा दिल ही नहीं
हुई रातें उदास मेरा दिल ही नहीं 
ढूंढते रोया सारी रात मेरा दिल ही नहीं 
पूछते हैं दर्द-ए-दिल का सबब....मैं क्या दूं जवाब
मेरे पास दिल ही नहीं।

बेवफ़ा के आंगन का कहीं खेल तो नहीं 
खेलते टूटा होगा कितनी बार कहीं मेरा दिल तो नहीं,
बदनाम रहता था अक्सर गलियों में उनकी 
चर्चा सुनी है फिर एक बार कहीं मेरा दिल तो नहीं,
वापस ढूंढ लाऊं लगा लूं सीने से फिर एक बार
आह भरे तो एक बार मेरा दिल भी कहीं,
मेरे पास दिल ही नहीं।

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5 APR AT 6:43

मैं....मैं है
तू.....तू है,
मैं ही मैं का प्रमाण है
तू बस निस्वार्थ है,
मैं ही गुमान है
मैं के दसों शीश
मैं की दसों भुजाएं हैं,
तू पुरूषोतम है
तू सत्य है
तू अहिंसा का मार्ग है
मैं....मैं है
तू.....तू है।

मैं सर्वोत्म है
तू एकत्र है,
मैं शून्य है
तू अनन्त है,
क्रोध मैं है
प्रेम तू है,
अग्नि मैं है
शीतल तू है,
मैं में मय है
तू अमृत है,
हर तू वजह की मैं है
इस ईर्षा बहाव से जहान में
तू-तू मैं-मैं है ।

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28 MAR AT 12:23

हर दिन मर जाता है अपने आप में
जब वो बीत कर आज से कल हो जाता है,
जिन्दा आज में आज भी नहीं रहता
हर पल मर जाता है जब वो बीत जाता है,
मानते हैं इंसान की एक उम्र होती है
उसका बचपन होता है उसकी जवानी होती है,
जब यादों में उनको जिन्दा रखा जाता है
समझो वो जवानी वो बचपन मर जाता है,
हर दिन मर जाता है अपने आप में
जब वो बीत कर आज से कल हो जाता है।

इच्छाओं से आदमी जिन्दा होता है
इच्छाओं के बगैर खोखला हो जाता है ,
खा जाता है जिम्मेदारी नुमा दीमक इच्छाओं को
वरना इच्छाओं का लालन पालन बचपन से हो जाता है ,
हर शोक मर जाता है अपने आप में
जब जिम्मेदारियों का आगमन होता है,
हर दिन मर जाता है अपने आप में
जब वो बीत कर आज से कल हो जाता है।

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30 JAN AT 18:29

पाप पे पाप चढ़ रहे हैं
चलो कुंभ चल रहे हैं,
धो के नए कर लेंगे
तन वही रहेगा मन स्वच्छ कर लेंगे ,
जन्म क्या पता क्या मिलेगा अगला
अगले का अगले में होता रहेगा भला ,
बिना धर्म के बिना कर्म के पुण्य मुफ्त में मिल रहे हैं
चलो कुंभ चल रहे हैं ।

मात पिता की सेवा छोड़ो
शाही स्नान का अवसर चुनलो,
रेल मिलेगी तुम्हें भी दिल्ली
प्रयागराज की रहा को चुन लो,
भीड़ भड़का धक्का मुक्की
त्रिवेणी में लगा दो डुबकी,
रौंदो जो भी रौंदा जाए
पुण्य के साथ पाप भी आए,
देखा देखी होड कर रहे हैं
चलो कुंभ चल रहे हैं,
चलो कुंभ चल रहे हैं।

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15 SEP 2024 AT 23:06

अर्थी पर कांधा देने आ गए
जीते जी ना हाल पुछके जा सके,
बेरी हुए जैसे बैर कितने बड़े
समशान में जाके बैर सारे दूर हुए,
पराए थे अपने....अपने गैर रहे
मैं की बोली वाले मिट्टी के पांव छुए,
रोएं हैं की अपना है
आएं हैं की अपना है ,
समाज चक्र है खींच के लाया
आंसू की धारा होती है माया ,
चिता जली फूल चुगे
फूल बहाए गंगा नहाए,
हुई तेहरवी पंडित जीमे
रिश्ते छूटे फिर हुए पराए ।

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13 APR 2024 AT 0:57

लगी वो जाकर होंठ से
पूछी वो आख़िर हाथ ने
भुज गया रंग चेहरे का
लहू मिला जब शराब में,

होंठों में दबा जलाई वो,
आंखों में नशा भर लाई जो
फेफड़े सुलगे आंच से उसकी
दम भर सिगरेट उड़ाई जो,

मौसम-मौसम वो क्या था मौसम
मातम मातम वो था बस मातम,
उंगलियों से झड़ती राख चिता की
खुद को अग्नी खुद ने लगा दी,
रोया ना फिर झुमा पूरा
जवानी नशे के धड़ में उतार दी
जवानी नशे के धड़ में उतार दी ।

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8 JAN 2024 AT 22:37

रहे तेरे बगैर के तेरे इंतजार में रहे
रहे थे अकेले ही अकेले ही रह गए,
हुई थी बात की मिलते रहेंगे
बात थी बात को सोचते ही रह गए,
शराब थी या कसम थी तुम्हारी
कसम टूट गई शराब में मरते ही रह गए,
शीशे को तोड़े के टूटे चांद पे रोएं
चांद से तन्हा और शीशे की तरह टूटे ही रह गए,
लंबे रास्ते और रातें काली होती ही गईं
आंखो के गढ्ढे भी रुसवाई की निशानी हो गए,
"प्रवेश" तमाशा लगती थी दुनिया ये कभी,
अब खुद तमाशा ही तमाशा बनकर रह गए
रहे तेरे बगैर के तेरे इंतजार में रहे
रहे थे अकेले ही अकेले ही रह गए ।

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31 DEC 2023 AT 10:30

ये साल का दिन आखरी है
मगर देखा जाए तो
हर दिन आखरी होता है अपने आप में,
साल का नहीं तो अपने महीने का होता है
अपने सफ्ताह का होता है
अपने दिन का भी आखरी... आखरी दिन होता है।
जो जोश, उल्लास, उत्साह और उमंग की प्राप्ती
हम साल के आखरी दिन में रखते हैं
उतना ही नए साल के पहले दिन में रखते हैं,
मगर वो साल नया बस एक दिन का ही रहता है
फिर हम उसे पुराना ही कर देते हैं,
हम उसी रोज़मर्रा की उलझनों में झुलस जाते हैं
और देखते देखते हर दिन पुराना होता जाता है,
हर सफ्ताह पुराना होता जाता है,
फिर हर माह पुराना होता जाता है
और आख़िर में साल भी पुराना हो ही जाता है,
और हम उस से भी पुराने हो जाते हैं
बस एक दिन नए होते हैं
जिसे सब नया साल लिखते हैं।

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14 DEC 2023 AT 22:18

वो अपनी रफ्तार में थे
हम अपनी गती पकड़े हुए थे,
वो किसी को कुछ नहीं समझते थे
हम सबको साथ लिए हुए थे,
वो अपनी अपनी कहते थे
हम सबकी बातें सुनते थे,
वो विचारों के थे तंग तुर्स
हम खुल्ले विचारों वाले थे,
वो सबसे खफा-खफा रहते थे
हम सबके दिल में जगह रखते थे।

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