Parth Bhatt   (Parth)
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Joined 21 March 2019


Joined 21 March 2019
5 MAY AT 22:52

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो
न मेधया न बहुधा श्रुतेन।
यमेवैष वृणुते तेन लभ्यः
तस्यैष आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम्‌ ॥

अर्थात् - यह आत्मा व्याख्यान से नहीं मिलता, न बुद्धि से और न बहुत सुनने पढ़ने से। यह आत्मा जिसे चुनता है, जिस पर अनुग्रह करता है, उसी को प्राप्त होता है। उसी कृपापात्र के सम्मुख यह अपने आपको प्रगट करता है।

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29 JAN AT 20:44

गतेऽपि वयसि ग्राह्या विद्या सर्वात्मना बुधैः।
तथापि स्यान्न फलदा सहजा साऽन्यजन्मनि॥

बुद्धिमान व्यक्ति को बुढ़ापे में भी पूरे मन से विद्या प्राप्त करनी चाहिए। भले ही वह फलदायी न हो, लेकिन अगले जन्म में वह आसानी से प्राप्त हो जाएगी।

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18 JAN AT 20:32

चिन्तनसुधा-

शब्दसम्बन्धयोर्मूल्यं ज्ञायते मानवैस्तदा।
निर्याति वदनादेको द्वितीयो जीवनात्सदा ।।

डॉ. योगेश डी. पण्डया।

શબ્દ અને સંબંધની કિંમત લોકોને ત્યારે જ ખબર પડે,
જ્યારે એક મુખમાંથી અને બીજો જીવનમાંથી નિકળી જાય ત્યારે.

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8 NOV 2024 AT 11:40

न हि कल्याणकृत्कश्चिद् दुर्गतिं तात गच्छति।

भगवद् प्राप्ति के मार्ग पर चलने वाले को बुराईयां पराजित नहीं कर सकती।

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1 NOV 2024 AT 21:45

। नूतन-वर्षाभिनन्दनम्।
નૂતન વર્ષ આપને તથા આપના પરિવારને સુખપ્રદ,આરોગ્યપ્રદ અને શાંતિપ્રદ બને તેવી પ્રભુને પ્રાર્થના.

નવ-વર્ષની ખૂબ ખૂબ શુભેચ્છાઓ..

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31 OCT 2024 AT 6:46

। तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
हे प्रभु ! हमें अज्ञान(अंधकार) से ज्ञान(प्रकाश) की ओर ले चलो...

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23 MAR 2023 AT 9:11

ईश्वरेण प्रदत्तेयं वाणी सर्वार्थसाधिका।
परानिन्दावचोभिर्न क्षीणशक्तिर्विधीयताम्।।
- પરમાત્મા એ આપેલી સારી ભેટ 'વાણી' એ બધું જ અપાવવા વાળી છે.તેને કોઈની નિંદા કરીને શક્તિહીન ન કરવી જોઈએ.

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24 NOV 2022 AT 8:54

"मासानां मार्गशीर्षोऽहम् "

जिस अन्नसे सम्पूर्ण प्रजा जीवित रहती है, उस (वर्षासे होनेवाले) अन्नकी उत्पत्ति मार्गशीर्ष महीनेमें होती है। इस महीनेमें नये अन्नसे यज्ञ भी किया जाता है। महाभारत-काल में नया वर्ष मार्गशीर्षसे ही आरम्भ होता था। इन विशेषताओंके कारण भगवान् ने मार्गशीर्षको अपनी विभूति बताया है।

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26 OCT 2022 AT 8:03

।।नूतन-वर्षाभिनन्दनम्।।

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18 AUG 2022 AT 10:34

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥

भावार्थ :-
हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥

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