मैं अपने बच्चे को इस दुनियां में कभी
नहीं लाना चाहुंगी।
क्योंकि इस दुनियां में लाकर मै अपने
बच्चे को दुनियां के वो दर्द और दुःख
नहीं देना चाहती ।
जो आज तक मुझे मिलते रहे हैं ।-
ओ भाई मेरे-
इस बार रक्षाबंधन कुछ इस प्रकार मनाएंगे,
कि तुम मेरे रक्षक बनकर नहीं आओगे ।
मैं तुम्हारी रक्षक बनूं-
यह मेरा अधिकार है।
इसलिए इस बार मैं राखी बांधने नहीं,
बंधवाने आऊंगी।
इस बार रक्षाबंधन मैं कुछ इस प्रकार मनाऊंगी।
यदि तुम्हे लगता है
कि तुम भी मेरे रक्षक बनो,
तो हम दोनों ही एक-दूसरे को राखी बांधने आयेंगे।
इस बार रक्षाबंधन हम कुछ इस प्रकार मनाएंगे।-
कठिन है जीवन,
क्योंकि मैं नहीं,
लोगों की सोच कमज़ोर है।
जो मेरी दृढ़ता को,
नासमझी मान लेते हैं।-
अब मेरे समाज के वर्गों को आरक्षण के नाम पर आर्थिक विकास की आवश्यकता नहीं,
वरन् मानसिक विकास की आवश्यकता है।
जितने आर्थिक विकास की आवश्यकता थी वह पूरा हो चुका है,
आज आवश्यकता आत्मनिर्भरता और आत्मबल की है।
यदि बात आर्थिक विकास की है तो केवल कुछ वर्गों को लक्ष्य ना बनाया जाए,
क्योंकि आर्थिक विकास की आवश्यकता प्रत्येक वर्ग के उस व्यक्ति को है जो दो वक्त का खाना भी नहीं खा सकता।-
ये मेरे देश की कैसी ज़ुबानी हो गई?
जहां राधा-कृष्ण की पूजा होती है,
वहां मेरे प्रेम की कहानी बेगानी हो गई।
प्रीत से भरा मेरा देश,
आज इतना असहाय क्यों हो गया?
मेरा सच्चा प्रेम दिल का कड़वा दर्द हो गया।
जिस मां के मन में हैं इतने जज़्बात,
वो भी चुप रह गई समाज के बोलो के साथ।
भाई-बहन के रिश्ते पर पर्व मनाता ये समाज,
क्यों करता है दो प्रेमियों की सच्चाई से इनकार।-
हर दिन का सूरज उम्मीदें लेकर आता है,
पर मेरे चेहरे की रोशनी नहीं लौटा पाता।
थाली तो सजती है रोज़,
लेकिन मन को कुछ नहीं भाता।
होठों पर मुस्कान की परछाई तो आती है,
मगर दिल का दर्द कभी छुपाया नहीं जाता।
नींद पलकों तक पहुंचती है अक्सर,
पर बैचेन मन को सुलाया नहीं जाता।-
वो चला गया...
हां, वो चला गया।
मैं नहीं जता पाई उस पर अपना अधिकार-
और वो चला गया।
हां, वो मुझे छोड़कर,
किसी और के साथ चला गया।
अनेक लोगों के कहने पर भी,
मैं नहीं बांध पाई उसे-
और वो चला गया।
मेरी दी हुई आज़ादी को,
शायद मेरी लापरवाही समझकर,
वो मुझे छोड़कर चला गया।
हां...
वो चला गया।-
अब "हरियाली तीज" पर सिंधारे के नाम पर,
एक बेटी या बहन को, बिंदी, काजल या मेंहदी की आवश्यकता नहीं।
वरन् उन ऊंचे और अच्छे विचारों की आवश्यकता है,
जो बेटी या बहन को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता की ओर ले जाए।-
मुझे बेहतर की तालाश नहीं,
मुझे तालाश है उसकी।
जो मुझे प्रेम करे,
जिसे मैं भी प्रेम करूं।-
मेरे वो मुस्लिम परिवारजन,
जो कभी मेहमान बनकर आए थे,
फिर पता ही नहीं चला,
कब प्रेम ने
हमें एक परिवार बना दिया।
फिर एक दिन अचानक
कुछ दुश्मन आ धमके,
हमारे बीच फूट डाल गए,
और वो फूट...
आज तक चल रही है।
मैं चाहती हूं-
अब वो फूट समाप्त हो,
और एक बार फिर
वही प्रेम और अपनापन उत्पन्न हो जाए।-