Parnika   (Parnika)
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Joined 7 April 2022


Joined 7 April 2022
19 HOURS AGO

ना चाहते हुए भी,
मै इश्क में पड़ गई थी,
मैं कितना बदल गई थी।

ना चाहते हुए भी,
मैं किसी लड़के को पसंद करने लगी थी,
मेरी जिंदगी रंग बदलने लगी थी।

ना चाहते हुए भी,
मै उससे मिलने लगी थी।
दिमाग सब जानता था,
लेकिन दिल नहीं मानता था।

ना चाहते हुए भी,
ये दिल मान नहीं रहा था कि,
वो मुझे छोड़ गया,
मेरे दिल को तोड़ गया।

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5 OCT AT 19:22

ये रिश्ता खास था।
मेरे दिल के पास था।
मेरे जीवन का सच्चा एहसास था।

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30 SEP AT 23:52

क्या कमी थी मेरे उस प्यारे साथी में?

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28 SEP AT 19:25

समाज के डर से मेरे बड़ों ने अपने मन को मारा और वो उन खुशियों को नहीं पा सके,
जो वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति चाहता है।
लेकिन समाज का प्रत्येक व्यक्ति वही सुख चाहता है,
जिसे स्वीकार करने की हिम्मत वह समाज से नहीं जुटा पाता।

आज मेरे दोस्त भी अपने मन को मार रहे हैं,
लेकिन मैंने ठान लिया है कि मैं अपने मन को कभी नही मारुंगी।
बड़ों से सीखी यह बात- "पहले अपने बारे में सोचो" आज मुझे अपने भीतर की आवाज़ को दबाने नहीं देगी।

हमारा समाज हर पल परिवर्तन मांगता है।
हम लगातार ना तो खड़े रह सकते हैं और न ही बैठे रह सकते हैं।
हम एक ही स्थिति में स्थिर नहीं रह सकते।
यही जीवन का सत्य है कि परिवर्तन अनिवार्य है,
और समाज का वास्तविक विकास भी इसी पर टिका है।

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27 SEP AT 23:52

मेरा एक सवाल है-
सास और बहू में इतनी अनबन क्यों है?
एक समय ऐसा था जब सास को परिवार और बहू के हित के लिए कठोर होना पड़ता था,
लेकिन परिवर्तन संसार का नियम है।
समय बदल चुका है, और समय के साथ नियम भी बदलने चाहिए।

आज बहू केवल घर की जिम्मेदारी निभाने वाली नहीं है, वह शिक्षा, संस्कार और समझ से भरी एक नई सोच लेकर आती है।
इसलिए समाज में परिवर्तन लाने की जिम्मेदारी सास से पहले बहू की है।

मेरा निवेदन है कि प्रत्येक बहू अपनी सास को विरोधी ना माने,
बल्कि उन्हें मां समझकर उनका आदर करे।
उसी तरह प्रत्येक सास को भी चाहिए कि वह बहू को बेटी समझकर उसका साथ दे।

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21 SEP AT 18:38

क्यों ये दिल बार-बार कह रहा है?
तू मेरे लिए मुझसे ज़्यादा दर्द सह रहा है।
ये जो तू मुझे बार-बार निराश कर रहा है,
असल में, मुझे मेरे लिए ही नज़र अंदाज कर रहा है।

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20 SEP AT 11:40

मुझे मेरे एक सवाल का जवाब बता दो,
मुझ पर इतना सा एहसान जता दो।
क्या किताबों को पढ़ने का
मकसद परीक्षा पास करना था,
या रूढ़िवाद की दीवारों को तोड़कर
नया समाज गढ़ना था।
अगर नया समाज गढ़ना है,
तो बार बार मुझे तोड़ते क्यों हो?
मुझे गलत कहकर मुझे रोकते क्यों हो?
जब मैं नहीं रूकती गलत कहने पर भी,
तो तब तुम ऐसे रंग बदलते क्यों हो,
भावुकता से मुझे छलते क्यों हो?
बस मुझ पर इतना सा एहसान जता दो,
अपने प्रेम से मुझे आगे बढ़ा दो।

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19 SEP AT 14:45

नरम दिल को उदास क्यों कर रही है?
मज़बूत दिमाग को निराश क्यों कर रही है?
ऐ जिंदगी, तू मुझे लोगों से
"पागल" कहलवाने का इंतेज़ाम क्यों कर रही है?

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18 SEP AT 19:11

अगर वो खुश हैं किसी और के साथ,
फ़िर मेरे मन में भी नहीं है उनसे विवाह की बात।
लेकिन उनकी याद बहुत आती है,
हर बार एक मीठा दर्द दे जाती है।
क्या सभी अपने प्रेमी से ऐसा प्रेम करते हैं,
ऐसे ही मीठे दर्द को महसूस करते हैं?

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17 SEP AT 14:45

वो चला गया छोड़कर,
मेरे दिल को तोड़कर।
दिल बवाल करता रहा,
अनगिनत सवाल करता रहा।
दिल ये जान नहीं रहा था,
उसे बेवफ़ा मान नहीं रहा था।
दिल मुझे सता रहा था,
आंखों से नीर गिरा रहा था।
जब रोते-रोते मन भर जाता था,
चेहरे पर मुस्कान छा जाती थी।
हाय! क़िस्मत ये कैसा दृश्य बनाती थी,
जहां, मै ही मेरा व्यंग उड़ाती थी।
यूं ख़ुद को सहलाती थी,
खुद ही खुद को चुप कराती थी।
हाय! क़िस्मत ये कैसा दृश्य बनाती थी।

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