दुनिया में बुरे लोग ज़्यादा हैं और बुराई है,
ये अफ़वाह किसने उड़ाई है ?
अरे ओ अफ़वाह फैलाने वाले ,
तुम्हारे इस डर ने ही तो अच्छे लोगों को घरों में छुपाया है।
तभी तो इस दुनिया को बुरा बनाने का,
तुम्हारा मंशूबा मुकम्मल हो पाया है।-
प्रेम विरह की ये घड़ी भी कट जायेगी।
हम मिल ना सके भले ही,
लेकिन ये अंधेरी रात भी गुज़र जाएगी।
बस आप इस अंधेरे में घबराना मत,
मेरे दिल को छोड़कर कभी जाना मत।
मै खुद को संभालती रहूं,
आप भी अपने आप को संभाले रहो।
और मै आपके दिल को छोड़कर जाऊं,
ऐसा समय भी कभी ना आए।
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जहां दिल से किया प्रेम सच्चा होता है,
वहां मीलों की दूरी केवल एक भ्रम होती है।-
क्या प्रेम में मिलना ज़रूरी है?
अगर मिलना ज़रूरी है,
तो मिलन में क्यों इतनी मज़बूरी है?
मुझे, मुझसे और मेरे प्रेम से मिला दो।
मेरे जीवन में, ये गुल खिला दो।-
कैसे मान लूं वो बेवफ़ा हैं?
जितना दर्द मुझे है उनके दूर जाने का,
उनके लिए भी उतनी बड़ी सज़ा है।
क्यों कह दूं वो धोखेबाज हैं?
उनके दिल में भी तो जज़्बात हैं।
वो ही जाने उनकी क्या मज़बूरी रही?
जो हमारे बीच ये मीलों की दूरी रही।
वो मुझसे कहते तो एक बार,
मै उनकी मज़बूरी मिटा देती।
शायद उन्हें डर था कि,
उनकी मज़बूरी मिटाने में ख़ुद को सज़ा देती।**
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हम प्रैक्टिकल हुए
ताकि, दर्द से खुद को बचा सके।
अपनी ही भावनाओं को किसी कोने में छुपा सके?
मगर आज...
वही भावनाएं जो हमें इंसान बनाती थीं,
हमारी ही सोच के नीचे
दम तोड़ रही हैं कहीं।
क्या यही समझदारी है ?
या फिर एक डर है,
जिसे हमने सोच का नाम दे दिया है।-
एक सच्चा हमसफ़र ...
जो दूर रहकर भी मेरा साथ निभाए,
मीलों की दूरी को दिलों की दूरी ना समझे।
जो मुझे मेरे चेहरे से नहीं, मेरी रूह से पहचाने।
जिसका विश्वास इतना अटूट हो,
की दुनिया की कोई भी ताकत उसे तोड़ ना सके।
वो जो खुद परिवार से जुड़ा हो,
जो अपने परिवार, मेरे परिवार और मुझे साथ में अपनाना जानता हो।
जो मेरी जुबां से नहीं,
मेरे दिल की ख़ामोशी से भी मुझे समझ सके।-
ऐसा पहली बार हुआ है जीवन के इस सफ़र में,
की खुद के लिए भी कुछ मांगने की इच्छा जगी है
मन में।
जो मांगा है, हे ईश्वर, बस वो मुझे मिल जाए,
मेरे अंतर्मन की ये सच्ची प्रार्थना पूर्ण हो जाए।-
कुछ एहसास शब्दों से नहीं,
समझ से जुड़ते हैं।
हर किसी में मुझे समझने की,
समझ नहीं होगी।
इसलिए मैंने बोलना छोड़ दिया,
लेकिन लिखना नहीं छोड़ूंगी।
मै लिख रही हूं अपने लिए,
और अपने उन दोस्तों के लिए-
जो मुझे पढ़कर बिखरते नहीं,
निखरते हैं।-
मैंने कभी ख़ुद को, किसी बनावट या दिखावे से नहीं सजाया।
आज मैं अपनी किसी भी चीज को एडिटिंग आदि से नहीं सजाना चाहती।
जो जैसा है उसे वैसा ही रहने दिया जाए-
चाहे निर्जीव हो या जीव।
इस दुनिया में सभी अच्छाई और बुराई दोनों लेकर आए।
दुनिया को ज़रूरत भी दोनों की है,
इसलिए सजाने, संवारने और बदलने की वास्तविक आवश्यकता क्या है?
हां, लेकिन किसी बिखरे इंसान को संभालने के
लिए,
उसे संवारने के लिए कहा जा सकता है।
पर इंसान भी कुछ समय तक ही संवरे,
जीवन भर संवरता ही ना रहे।
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