कौन कहता है दुनियाँ में नारी कमज़ोर
भारत की इस भू पे देखो ,नारी शक्ति का शौर है
देश के सर्वोच्च पद पे ,विराजमान है नारी
धन दौलत और प्रभुत्व की हक़दार है नारी
जिस दिल्ली को पाने को,ना जाने कितने युद्ध हुये,
आँख खोलकर देखे दुनियाँ,वहां चलाती सरकार है नारी
था पुरषों का मान अखाडा जो,
अब उसमे भी मेडल की हक़दार है नारी
खेल कबड्डी, कुश्ती ,हाकी ,
चलाती तलवार है नारी
अब कमजोर ना आंक इसे तुम,
हर सुखः दुःख की भागीदार है नारी
जो सोच तुम्हारी है छोटी तो,
अम्बर सा विस्तार है नारी
जो गृहस्थ में तुम पाते हो
प्यार अपार है नारी-
सलामत रखना ये मुस्कान अपनी,
आँशुओ का कोई खरीददार नही होता,
खुशियाँ बाँटने आ जाये लाखों लोग,
गम में कोई ,मददगार नही होता,
ये इश्क़ मोहब्बत सब फरेबी बाते है,
सच में इनका कोई आधार नही होता,
बुरे वक़्त में भी जो तेरा साथ ना छोड़े,
उससे अच्छा कोई यार नही होता,
अगर हों गलत राह पर,तो छोड़ दो,
माता पिता से अच्छा ,कोई सलाहकार नही होता,
कुछ सपने अगर है अधूरे तो ,गम ना कर,
ये जिंदगी है, यहाँ हर सपना साकार नही होता ।।
@parmeet.dhayal-
हमने यहाँ पे शिक्षा को ,व्यापार ये बनते देखा है ,
अनपढ़ को भी कुर्सी का ,हक़दार ये बनते देखा है ,
एक गुनाह पे युवा को, ना मिलती नौकरी सरकारी ,
हमने तो यहाँ गुंडों की ,सरकार ये बनते देखा है ।।
प्रमीत धायल-
एक कोहिनूर को सच में ,फिर से खो दिया हमने,
जब खबर लगी इस दिल को तो ,रो दिया हमने ,
जो बनकर दीपक जला सदा ,इन अँधेरी राहों में ,
ऐसे शक्ति पुंज की शक्ति को,कर लो दिया हमने ,
💐💐💐💐💐😢😢
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वो बड़ी ही चंचल ,मासूम और नादान दिखती है ,
महकती है फूलो की तरह ,गम से अनजान दिखती है ,
उसे देख आ जाती है मेरे चेहरे पे रौनक ,
इस् गम भरी जिंदगी में , वो मुझें खुशियों का आसमान दिखती है ,
मुस्कुराती है तो मानो ,ये गुलशन महक उठा हों ,
उसकी आँखों की मस्ती से ,ये दिल चहक उठा हों ,
जिसको अक्सर देखता है तु प्रमीत,बंद आँखों से ,
तुम्हे तुम्हारा वही , अरमान दिख रही है..
मेरे खुदा ,एक दुआ तो ,मेरी भी कबूल करना ,
हक़ में इसके सदा,मोहब्बत के उसूल करना ,
ना फीकी हों रौशनी ,इस चाँद से चेहरे की ,
ना भूल से भी कोई, ना ऐसी भूल करना ..
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हर किसी के नसीब ,नहीं है सुखः भाई का ,
कुछ रंज में पाल लेते है ,गम जुदाई का ,
ये दुनियाँ खिलाफ़ है तो,गम कैसा ,
जब साथ हों ,रब जैसे भाई का ..
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मैंने किसी को इश्क़ में ,टूटे इस कद्र देखा है ,
वो लगता नहीं है शख्स , बने उसे पत्थर देखा है ,
वो भूल चुका है मुस्कुराना ,बस आँशु बहाता है ,
ना खबर है उसको रात की, यूँही दिन् गुजरते देखा है ।
शायद. ! वो किसी को हद से ज्यादा चाहने लगा था ,
भूल सब ,बस उसको रब बताने लगा था ,
शायद! वो जीने भी लगा हों ,ख्वाबों की दुनियाँ में ,
क्युकी ,मैने आज ,उसके हर ख़्वाब को बिखरते देखा है ।
कुछ नहीं कहा उसने उससे ,ये सच है मगर ,
मैंने उसकी आँखों से ,बहता समंदर देखा है ,
कोई धड़कनों को संभाल कर ,बैठा है उसकी ,
मैंने एक शख्स,बैठा उसके अंदर देखा है ।
जो भी है मेहबूब उसका ,ये खबर उस तक पहुँचा तो देना ,
कहीं वो मिट ना जाये , आकर गिले शिकवे भूला तो लेना ,
अगर वो मर गया इस् हाल में , तो हश्र तेरा भी यही होगा ,
मैंने बद्दुआओं से ,महलों को होते ,खंडर देखा है ।।
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क्यों खुद को ,हम पर फ़िदा कर बैठे हों ,
क्यों हम को , दुनियाँ से जुदा कर बैठे हों ,
हम भी तो है एक मुसाफिर इस दुनियाँ के ,
फिर क्यों आप ,हमें अपना खुदा कर बैठे हों ,
बस फर्क इतना है ,कि हम मुस्कुराकर जीते है ,
इस दुनियाँ के गम को ,भुलाकर जीते है ,
मै नहीं है इस काबिल ,कि तेरा साथ दे पाऊँ ,
फिर हमसे क्यों ,उम्मीदें वफ़ा लगा बैठे हों ...!!-
थोड़ा सोचूँ ,फिर एक बात लिखूँ ,
क्यों ना तेरा मेरा साथ लिखूँ ,
ये जो महज ,हों रही है बाते अपनी ,
क्यों ना इश्क़ की, पहली शुरुवात लिखूँ ,
कितना देती है तेरी ये बातें सकूँ मुझकों ,
बता कैसे शब्दों में ,वो एहसास लिखूँ ,
तेरे आने से ,छुप जाता है गम मेरा ,
फिर ना कैसे तेरी जीत,और उसकी मात लिखूँ ,
तु ना जाने , तुमसे करते है गुफ़्तगू ,अपने ख्यालों में ,
अगर हों इज्जाजत ,तो अधूरी हम दोनो की वो बात लिखूँ ,
ना जाने कब होगा ये अरमान मुक़्क़मल मेरा ,
ना जाने कैसे होगी ,वो मुलाक़ात लिखूँ ,
@parmeet.dhayal-