Parikshita Nalawade   (Parikshita Nalawade)
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कुछ शब्द जो दिल से बया हुए....
Joined 29 August 2018


कुछ शब्द जो दिल से बया हुए....
Joined 29 August 2018
26 AUG AT 1:59

There was a day that once felt so special.
I thought it belonged to both of us,
but slowly I realized—it was only mine.

At times, you forgot…
or maybe you just waited for me
to remind you of it first.

In the beginning, it cut me deep.
I’d get angry,
refuse to talk,
as if my silence could make you remember.

But time has its own way of teaching.
I got used to it—
the forgetting, the waiting.
It still hurts,
but I stopped asking, stopped reminding.

Because when priorities change,
even the most special days
become just another date on the calendar.

I bent, I adjusted,
I changed myself in countless ways.
Yet, when it came to me—
nothing changed in you.

So I pulled back,
distanced myself,
spoke less and less.

And in the quiet I realised—
I stepped away,
yet my heart never truly let you go.

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6 AUG AT 7:33

ठंडी सी हवाएँ चल रही थीं,
और वो पहली बूँद गिरी हथेली पर,
जैसे किसी पुराने ख़त का एक लफ़्ज़ अचानक मिल जाए।

खिड़की से देखे वो पहाड़,
धुँध में लिपटे, कुछ कह रहे थे शायद…
या शायद मैं ही ज़्यादा सुनना चाहती थी।

सिर में हल्का सा दर्द,
मगर उस दर्द में भी
एक अजीब सी तसल्ली थी —
शायद इसलिए कि चाय साथ थी।

भुट्टे का तीखा-मीठा स्वाद,
उससे भी ज़्यादा सुकून सी कुछ यादें थीं,
जो उस हर कोने से झाँक रही थीं
जहाँ हम कभी बेपरवाह बैठे थे।

वो लम्हे, जो गुज़रे तो थे,
पर आज भी
बरिश के साथ सजते हैं आँखों में —
ना पूरी तरह उदासी,
ना पूरी तरह सुकून,
बस कुछ अधूरे पल
जो अब भी पूरे लगते हैं।

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29 JUL AT 21:07

“बारिश और बेसबब बातें”

कानों में ईयरफोन,
हाथों में चाय,
सामने हो बारिश,
कोई दोस्त आ के साथ बैठ जाए।

भीगे से जज़्बात,
धुएँ सी रातें,
बेसबब हँसी और,
ख्वाबों में खोई अधूरी सी बातें।

मौसम हो सुस्त,
हम हो बेफिक्र,
दिलों की हो साज़िश,
ना कोई शिकवा, ना कोई ज़िक्र हो।

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28 JUL AT 22:34

"यादों का नशा"

जब उनसे मिलना मुमकिन ना हो,
जब उनकी यादें मिटाना आसान ना हो।

जब एक गाना सुनते ही जज़्बात छलक जाएं,
और गीत के हर शब्द सीधा दिल को छू जाएं।

तो वो माहौल, वो मौसम, वो रातें, वो बातें,
वो आहटें — सब कुछ बन जाते हैं एक अनकहा सा नशा।

ऐसा नशा, जो उतरता नहीं,
बस यादों में धीरे-धीरे और भी गहराता चला जाता है....

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24 JUL AT 21:41

"वो एक 'क्यों?'"

कभी-कभी उस क्यों का जवाब मिलता ही नहीं,
जिसने हमेशा साथ दिया, आज उसी की ख़ामोशी समझ नहीं आई कहीं।

कल तक जो हर बात साझा करते थे,
आज अचानक बेगाने से क्यों लगने लगे थे?

उसने कहा — “जो हुआ, ग़लत था,”
पर क्या हुआ — ये कभी नहीं बताया।

कई बार पूछा, कई बार सोचा,
पर वो तो जैसे सब कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ चुका था।

और मैं?
मैं बस उस एक क्यों में अटकी रह गई,
वो रिश्ता तो गया, पर सवाल दिल में रह गया कहीं।

अगर कुछ था भी, तो कहना मुश्किल क्यों हो गया?
अगर ग़लती मेरी थी, तो बता देना ज़रूरी क्यों न समझा?
और अगर कुछ भी नहीं था, तो सब इतना गहरा क्यों लगता गया?

अब साल गुज़र रहे हैं, लोग बदल रहे हैं,
पर एक रिश्ता था — जो बिना किसी शोर के टूट गया,
और एक क्यों है — जो दिल के एक कोने में सदा के लिए छुप गया।

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8 JUL AT 12:12

I’m Missing You (But I Won’t Say It)


I’m missing you, but not in the spot of telling you,
These lips stay quiet, though my heart aches through.
I’ve learned to smile, even when it stings,
To carry your absence like invisible wings.

I’m strong enough—at least that’s what I claim,
Until someone softly whispers your name.
Then silence breaks, the tears rush in,
And memories echo beneath my skin.

No calls, no texts, no signs to show,
Yet your shadow follows wherever I go.
I miss you—not loud, not bold, not clear—
Just enough to break each time you feel near.

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26 JUN AT 22:30

🌊 बहते पानी की सीख 🌊

बहते पानी के किनारों से जब सामना हुआ,
क्षणभर ठहरकर उसे देखने का मोह हुआ।

किसी की परवाह किए बिना, वो अपनी राह में बह रहा था,
अपनी ही खुशी में, चंचल लहरों-सा लहरा रहा था।

हर बहाव में जैसे कोई बात कह रहा था,
ज़िंदगी की सीख भी वो साथ बहा रहा था।

कहता था — "अपनी खुशी का कारण खुद बनो,"
हर पल को जीओ, किसी और से मत बंधो।

उसे देखकर मन एकदम शांत हुआ,
उसके पास जाने को दिल बेक़रार हुआ।

सोचा — क्यों न अपनी शख्सियत वैसी ही बनाई जाए,
जो भी पास आए, वो सुकून लेकर लौट जाए।

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8 JUN AT 0:29

|| आधार ||

चालता चालता ठेच लागली, पडले मी
बाजूला होती ती, पण तिने हात मात्र दिला नाही
आधाराची आस धरून, तिथेच बसले मी
ती पाहत राहिली माझ्याकडे, पण आधार काही दिला नाही

आश्चर्यातून विचारले — "का तुला माझी काळजी नाही?"
तिचं उत्तर आलं —
"तू स्वतःला सावरायचा प्रयत्न कर,
गरज लागलीच, तर आहेच मी."

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2 MAY AT 23:03

"ती व्यक्ती.... जिचं मोल शब्दांत मावणार नाही"

मोठी माणसं.... अनुभवांनी भरलेली असतात,
आपल्याहून कितीतरी पटीने जग पाहिलेलं असतं.
आपल्या चुका ओळखूनही,
त्या कुठे उघड करत नाहीत —
हसत हसत पोटात घेतात….

ते आपल्याला फक्त चांगलं जगायला शिकवतात,
कधी कानमंत्र देतात, कधी सावध करतात —
"खूप जीव लावून स्वतःला त्रास करून घेऊ नकोस,"
असं सांगताना ते स्वतःच्या वेदनांचा आरसा दाखवत असतात....

शिक्षक असणं वेगळं,
पण विद्यार्थ्याला स्वतःच्या मुलासारखं जीव लावणं
ही माणुसकीची पराकाष्ठा असते....

आपण झोप लागत नाही म्हणून
जेव्हा ते ‘आई’सारखं आपल्याला शांत करतात —
तेव्हा समजतं, शिक्षक हे केवळ शाळेपुरते नसतात,
ते आयुष्यभराच्या शिकवणीसारखे असतात….

माझ्या मूर्खपणामुळे
जेव्हा ते म्हणतात — “माझ्यामुळे तू त्रास करून घेतेस, विसरून जा मला,”
तेव्हा समजतं की ते मला विसरत नाहीत,
ते माझा विचार करताहेत.... अजूनही!

कदाचित पुढे कुठेतरी वाटा पुन्हा एकत्र येतील,
एखाद्या शांत संध्याकाळी ओळखीच्या हास्यात मिसळून भेटतील....
तेव्हाही मन म्हणेल — "तुम्ही होता, आहात आणि राहाल,"
कारण काही माणसं मनात घर करूनच राहतात....

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11 APR AT 22:15

"नाजूकसं हास्य"

ओठांवर तिच्या
एक नाजूकसं हास्य होतं,
का कुणास ठाऊक,
ते मला एक रहस्य वाटतं होतं.

माझ्यासाठी होतं ते हास्य,
की होती एखादी आठवण जुनी?
होतो मी तिचा खरंच,
की तिच्या मनात होते दुसरेच कुणी?

होते एकतर्फी प्रेम माझे,
की ते हसणे होते कोणते इशारे?
संभ्रमात पडलो मी —
नेमके कोणते ते रहस्य होते?

होते ते हसणे माझ्या साठी,
की होती कोणती ती आठवण जुनी?
ओठांवर तिच्या
एक नाजूक से हास्य होते,
का कुणास ठाऊक,
ते मला एक रहस्य वाटतं होते.

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