किसी ने आज हमसे यू फरमाया
21वीं सदी की होकर बहनजी वाले कपड़े पहनती हो,
थोड़ा तो मॉडर्न बनो इतना क्या छिछकती हो।
तो हमने भी उन्हें बताया
ऐसा नहीं छोटे कपड़े पहनने का शौक नहीं रखती हूं, बस उन हवसी आंखों वाले दरिंदे से डरती हूं।
ऐसा नहीं लिहाज में रहती हूं,
बस अनजान लोगों की तानों से बचती हूं।
ऐसा नहीं खुलकर जीना नहीं चाहती,
बस दुनिया के ढके हुए गंदे चेहरे को सोचकर थम जाती हूं।
जब रोड पर चलती हूं तो उन अनजान आंखों को अपने तन पर देखकर कहीं छुप जाना चाहती हूं।
उन बहनजी वाले कपड़ों में भी खुद को निर्वस्त्र पाती हूं।
कैसे बनूं मैं मॉडर्न इस सोसाइटी में ,
जहां खुद आंटीया लड़कियों को उनके ब्रेस्ट की साइज पर जज करती हैं।
कैसे पहनु मैं मॉडर्न कपड़े जहां साड़ी-सूट पहनने वालों के भी रेप होते हैं।
कैसे जिउ मैं खुल-के उन लोगों के बीच
जो खुद की बहन-बेटियों को बचाने के लिए बंदिशें लगाते हैं,
और दूसरी तरफ किसी और की बेटी को हवसी नजर से ताड़ते है।
नहीं बनना मुझे मॉडर्न
बस मुझे आजाद कर दो
बस मुझे खुलकर जीने दो
बस उन आंखों को दूर रखो
जो हमें महफूज रखना चाहती हैं
क्योंकि जब वह नजर हट जाएगी,
हम खुल के जीने भी लगेंगे और मॉडर्न भी बन जाएंगे।
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