Paraveen Bisht   (परveen Singh bisht)
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Joined 9 January 2021


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Joined 9 January 2021
14 JUL 2022 AT 1:11

इस शहर की भीड़ में, मैं खर्च हो रहा हूं
मैं खुद ही और खुद ही में फर्क हो रहा हूँ
कौन हूं अभी तलक क्यों मौन हूं अभी तलक,
बस यही सोचकर,
इस चटकती धूप में बर्फ हो रहा हूं..
इस शहर की भीड़ में, मैं खर्च हो रहा हूं,
मैं शर्म हो रहा हूं,
मैं क्रोध हो रहा हूं,
मैं हीन हो रहा हूं,
विरोध हो रहा हूं,
मैं ताप हो रहा हूं,
और पाप हो रहा हूं,

मैं शून्य हो रहा हूं, मैं शून्य हो रहा हूं, मैं शून्य हो रहा हूं....

इस शहर की भीड़ में, मैं खर्च हो रहा हूं............

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17 JAN 2022 AT 11:12

उसकी झूठी बातों पर मैं हर दफा यकीन कर गया,
मैं मीठा था अपने शहर में बहुत,
उसने छुआ और मुझे नमकीन कर गया..

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9 JAN 2022 AT 14:39

तुम खिली प्रेम की ज्योति हो,
मैं मुरझाया अंधेरा हूं,
तुम पहली किरण हो सूरज की,
तुमहे देखके मैं बोराया हूं,
मैं लूटा हुआ एक बेचारा,
तुम रानी पूरे समंदर की,
मैं पागल आशिक आवारा,
तुम दुनिया हो मेरे अन्दर की,
तुम खिली प्रेम की ज्योति हो,
मैं मुरझाया अंधेरा हूं,
धन्य हुआ तुम्हे पाके,
उस क्षण भंगुर के सवेरे मैं,
फिर जीत लिया तुमको मैने
और हार गया खुद को ही मैं,
तुम एक नामी नदी हुई,
मैं भटकाया हुआ गदेरा हू,
तुम खिली प्रेम की ज्योति हो,
मैं मुरझाया हुआ अंधेरा हू,,,,

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4 JAN 2022 AT 23:31

वक्त बदलता रहता है, जज्बात बदलते रहते है,
जब छोड़ जाएं अपने तो, हालात बदलते रहते हैं,
कुछ यार बदलते रहते है,कुछ प्यार बदलते रहते है,
देखो उन बेघर लोगों को, वो घरबार बदलते रहते है,
पेसो की तंगातंगी में, कुछ काम बदलते रहते है,
कुछ टूट कर इश्क़ में आशिक, जाम बदलते रहते हैं,
देखो उन बेबस लोगो को, जो भगवान बदलते रहते हैं,
कर्मो का वो कत्ल करके, ईमान बदलते रहते हैं,
वक्त बदलता रहता है, जज्बात बदलते रहते हैं,

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26 DEC 2021 AT 17:12

उतर जायेगा नशा, इश्क ए मोहब्बत का इस दफा,
पहले हमे तबाह होकर आने तो दो यारो...

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26 DEC 2021 AT 16:46

चलो बिखेर देते हैं आज सारे रंग मोहब्बत के,
पर मायने ही क्या रहे, जब करना कैद ही हो,
चंद लमहात के लिए तो जी रहा था वो बहरूपिया,
चलो जाने भी दो, हम आज कुछ और बात करे...

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24 DEC 2021 AT 19:13

लफ्ज़ करता रहा बर्बाद मैं उस शख्स के लिए,,
जंगल मे लगी आग की तरह,,
वो फेंकता रहा पानी मेरे शब्दों में,
मूसलाधार बरसात की तरह....

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18 DEC 2021 AT 9:26

जीवन मरण के मध्य, इस संघर्ष में,,,
मैने आज खुद को कितना अकेला पाया है,,
ये पीड़ादायि पल, अंदर ही अंदर कुरेद रहे है
मुझे तोड़ रहे है
बिखेर रहे ही, जैसे बादल बिखेरते है पानी को धरा पर,
मैं डरा सहमा सा आज, मुस्कुरा रहा हू फिर भी,,

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14 DEC 2021 AT 20:36

मैं लिखा हुआ, एक राज सा,,
मैं भूली बिसरी याद सा,,
मैं यादों से मिटा एक हादसा,
खुद से ही हू नाराज सा,,

कभी खाक सा तो कभी आग सा,
कभी आंखों की बरसात सा,
कभी दिल से उठी कोई लालसा,
मैं खुद से ही हू नाराज सा,,

कभी कैद हू कभी आजाद सा,
कभी रंक हू तो कभी बादशाह,,
कभी शून्य सा, कभी आकाश सा,
मैं खुद से ही हू नाराज सा,,

मैं कांटों से बुना एक जाल सा,
मैं लहरों की हू चाल सा,
कभी यादों की हू ढाल सा,
मैं खुद से हू नाराज सा,,

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11 DEC 2021 AT 21:46

हर नाकाम कोशिश कर ली, तुम्हे पाने की मैंने...
पर तुम मिले ही नही कभी, इस जहां में मुझे...

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