Paras Mamgain   (ULJHAN)
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Joined 3 April 2021


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2 HOURS AGO

कुछ सुना किसी ने आवाज दी है
कदमों की आहत ने पत्तो पे सरसराहट की है

हवा की मनमानी तो समझ में आती है 
लेकिन टहनियों ने सुखी पत्तियों से बेमानी की है

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20 JUL AT 19:36

एक सफेद दूजा नारंगी
एक सहज दूजा तूफानी

जाने कितने रंग बदलती 
चेहरे से चेहरों को ढकती 

एक बात कि सौ है करती 
करनी को पूरा न करती 

हां हां करके ना ना करती 
फिर भी आना कानी करती 

नाम तेरा है बहता पानी
शरमाती गिरगिट कि रानी

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20 JUL AT 6:27

तेरे गाँव की सुबह कुछ खासी है 
मेरे शहर की धूप भी बासी है 

मैं भटकता हु गलियों में रात और दिन
तू है गाँव में बस यही काफी है

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19 JUL AT 22:25

आज फिर कही लालटेन देखी
मामूली बात थी पर कुछ अलग देखी

बिन बाती और तेल की निशब्त
रोशनी फैलाती हुई गुंजाइश देखी

ना ईंधन की बु, न जलने की कालिख
बिजली स्वचलित रोशनी की ख्वाइश देखी

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18 JUL AT 23:36

मन की बेचैनी मन ही जाने
है कोई दवा जो दर्द पहचाने

हुआ जख्मी बदन जब बातों में
लगी न दवा इन हालातों में

ढूंढ रहा हु शब्द मन के जंजालों में
कलम की धार हुई तेज उलझे सवालातों में

कई मुद्दतो से लिख रहा हु कहानी रातों मे
अब क्या कहूं जब धूल गई स्याही बरसातो में

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13 JUL AT 20:12

कही पड़ी है लू की मार
कही दरक रहे पहाड़
बाढ़ कही करे चित्कार 
जलमग्न हो रहे पहाड़

घर की जब खपरैल है टूटी
बूढ़ी मां पर आफत फुटी 
रुदन गांव का शहर जब पहुंचे
बात है कैसे मां तक पहुंचे

पैरो में जंजीरें डाले
जिम्मेवारी का भार संभाले
छोड़ सभी अब गांव को भागे
जर्जर ढांचे कांधे ताके

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21 JUN AT 22:22

तेरे कस्बे से होकर आया हु
कुछ यादें समेट लाया हु
वो गलियां बूढ़ी हो गई है
जिनकी कहानियां सुनाने आया हु

कुछ सुलझी सी बातें है
कुछ उलझी सी रातें है
सबकी सब निकाल लाया हु
अनकही कहानियां सुनाने आया हु

कुछ धाराएं सुख गई
कुछ नदियां थी रूठ गई
नए बीज बोने आया हु
वहीं बातें सुनाने आया हु

याराने सब छूट गए
अपने थे कुछ रुठ गए
आपबीती बताने आया हु
पुरानी यादें समेट लाया हु

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11 JUN AT 23:10

पल मिले कुछ आने वाले
झिलमिल झिलमिल गाने वालें

मन ही मन सब खाने वाले
बेचैनी को गले लगाने वाले

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10 JUN AT 21:54

अजब गजब से तौर तरीके 
एक एक करके हमने परखे

घाट घाट का पानी पीकर
हा ना करकर हमने सीखे

कुछ दिखते है अतरंगी से
कुछ हमने बेढंगी सीखे

गिरते पड़ते मरते खपते
सौ सौ रंग मलंगी सीखे

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4 JUN AT 22:19

हवा ने कान में आकर गुनगुनाया है 
मैं चलता चलता ठहर गया, कुछ याद आया है 

दूर बहुत निकल आया हु इस सड़क पर
तेरे इंतेज़ार ने मुझे बहुत सताया है

यूंही रहा अकेला सफर में मैं इस कदर
साथ मिला भी तेरा, तो खुद को तनहा पाया है

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