कुछ सुना किसी ने आवाज दी है
कदमों की आहत ने पत्तो पे सरसराहट की है
हवा की मनमानी तो समझ में आती है
लेकिन टहनियों ने सुखी पत्तियों से बेमानी की है-
एक सफेद दूजा नारंगी
एक सहज दूजा तूफानी
जाने कितने रंग बदलती
चेहरे से चेहरों को ढकती
एक बात कि सौ है करती
करनी को पूरा न करती
हां हां करके ना ना करती
फिर भी आना कानी करती
नाम तेरा है बहता पानी
शरमाती गिरगिट कि रानी-
तेरे गाँव की सुबह कुछ खासी है
मेरे शहर की धूप भी बासी है
मैं भटकता हु गलियों में रात और दिन
तू है गाँव में बस यही काफी है-
आज फिर कही लालटेन देखी
मामूली बात थी पर कुछ अलग देखी
बिन बाती और तेल की निशब्त
रोशनी फैलाती हुई गुंजाइश देखी
ना ईंधन की बु, न जलने की कालिख
बिजली स्वचलित रोशनी की ख्वाइश देखी-
मन की बेचैनी मन ही जाने
है कोई दवा जो दर्द पहचाने
हुआ जख्मी बदन जब बातों में
लगी न दवा इन हालातों में
ढूंढ रहा हु शब्द मन के जंजालों में
कलम की धार हुई तेज उलझे सवालातों में
कई मुद्दतो से लिख रहा हु कहानी रातों मे
अब क्या कहूं जब धूल गई स्याही बरसातो में
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कही पड़ी है लू की मार
कही दरक रहे पहाड़
बाढ़ कही करे चित्कार
जलमग्न हो रहे पहाड़
घर की जब खपरैल है टूटी
बूढ़ी मां पर आफत फुटी
रुदन गांव का शहर जब पहुंचे
बात है कैसे मां तक पहुंचे
पैरो में जंजीरें डाले
जिम्मेवारी का भार संभाले
छोड़ सभी अब गांव को भागे
जर्जर ढांचे कांधे ताके-
तेरे कस्बे से होकर आया हु
कुछ यादें समेट लाया हु
वो गलियां बूढ़ी हो गई है
जिनकी कहानियां सुनाने आया हु
कुछ सुलझी सी बातें है
कुछ उलझी सी रातें है
सबकी सब निकाल लाया हु
अनकही कहानियां सुनाने आया हु
कुछ धाराएं सुख गई
कुछ नदियां थी रूठ गई
नए बीज बोने आया हु
वहीं बातें सुनाने आया हु
याराने सब छूट गए
अपने थे कुछ रुठ गए
आपबीती बताने आया हु
पुरानी यादें समेट लाया हु-
पल मिले कुछ आने वाले
झिलमिल झिलमिल गाने वालें
मन ही मन सब खाने वाले
बेचैनी को गले लगाने वाले-
अजब गजब से तौर तरीके
एक एक करके हमने परखे
घाट घाट का पानी पीकर
हा ना करकर हमने सीखे
कुछ दिखते है अतरंगी से
कुछ हमने बेढंगी सीखे
गिरते पड़ते मरते खपते
सौ सौ रंग मलंगी सीखे-
हवा ने कान में आकर गुनगुनाया है
मैं चलता चलता ठहर गया, कुछ याद आया है
दूर बहुत निकल आया हु इस सड़क पर
तेरे इंतेज़ार ने मुझे बहुत सताया है
यूंही रहा अकेला सफर में मैं इस कदर
साथ मिला भी तेरा, तो खुद को तनहा पाया है-