आवाज लगाने की आदत सी हो गई है।
खुद को जगाने की आदत सी हो गई है।।
बन सकता था में भी भीड़ का हिस्सा।
पर खुद की राह बनाने की आदत सी हो गई है।।
रह सकता था में भी दोसरो के कंधों पर।
पर खुद को आजमाने की आदत सी हो गई है।।
कदम बहुत लड़खड़ाए, गिरा भी बोत ।
पर मुझे ठोकर खाने की आदत सी हो गई है।।
मुझे पता था ये शहर है बहरो का।
इसलिए शोर मचाने की आदत सी हो गई है।।-
रखेंगे तुम्हे अपनी पलको पर बिठाकर
ज़िन्दगी में चाहे मेरे जितने भी गम हो
तरस रही है आंखे जिसके लिए तुम्हारी
दुआ हैं खुदा से कि काश वो हम हो
चाहेंगे हम तुम्हे हमेशा खुद से ज्यादा
चाहे हमारी हैसियत कितनी भी कम हो-
When i propose a girl
Girl- we are friends and will be. And that's cool for both of us
Me👇-
खुले आसमान के नीचे उड़ते नादान परिंदों से जाना मैंने।
जब जिम्मेदारियों का बोझ उठाए बेटा खुले आसमान के नीचे मै।।
ये खुला आसमान इन परिंदों का ही तो है, इन्हें उड़ता देख ये जाना मैंने।
बनना चाहता हूं मैं भी एक परिंदा, यही सोचकर भर लेता हूं मन की उड़ान मै।।
सुबह घर से निकल जाना,
शाम को घर वापस आ जाना
जिम्मेदारी का मतलब इनसे भी जाना मैंने।
शरीर जिम्मेदारियों का पुतला है
इन सब बातों का जिम्मेदार अब किस-किस को बताऊं मै।।
"नादान परिन्दे"
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कहा ढूंढते फिर रहे हो हमे
ढूंढो चाहे तुम हमे हर जगह हर कही
फुर्सत से अपने दिल में भी तलाशो हमे
मिलूंगा तुम्हे सिर्फ इसी जगह बस यही
❤️-
जितनी खुशियां हमे मिल न सकी
उनसे ज्यादा तुमसे ले रहे सितम
क्यो तुम्हारे सामने होने की ख्वाईश में
अब तस्वीरों का सहारा ले रहे है हम
बन गए थे तुम्हारी यादो में हम पत्थर
देखो
अब कितना टूट कर बिखर रहे है हम-
लफ्जो में हो, जहन में हो,
इबादत में हो तुम मेरी
जहाँ भी हो, जैसी भी हो,
आदत में हो तुम मेरी
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ना तुम्हे चहरे से परखना, ना तुम्हे बातो से समझना
हम ठहरे राही तुम्हारी मुस्कान के
एक हंसी की चाहत में तुम्हारे करीब हैं हमे भटकना-
कैसे बनाऊ तुमसे इतनी दूरी
ख्वाबो ख्यालो मैं तुम ही हो
अब हुई है तलाश जो पूरी
जिसे तलाशा वो तुम ही हो-