Paramjeet Singh   (राही (परमजीत सिंह ))
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Joined 15 February 2022


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12 HOURS AGO

वो तो सब के लिए खड़ा था सबके साथ
रिश्तो और फ़र्ज़ की डोर से बंधा था

उसके दिल में सबके लिए स्नेह था
बस आंखे कुछ नम सी थी

न कभी उसे चाह थी की कुछ मिले बदले मे
और न ही कभी उसे कुछ मिला था

वो पतझड़ में आगे था मगर बसंत में दिखा नहीं
सबके दुखो में साथ था खुद कभी जिया नहीं

खोज लाता था वो अक्सर पानी रेगिस्तान में
मगर खुश था पिलाकर खुद कभी पिया नहीं |

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2 MAY AT 23:56

की कल सुबह फिर आएगी
चिड़या फिर से चहकेंगी
बसंत फिर महकाएगी
सुबह भी फिर से थी
चिड़यां भी थी
बसंत और महक भी
बस इक तू न था
तेरा इंतजार था

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1 MAY AT 21:04

कुछ दोस्त कभी भूले ही नहीं जाते
हम खुदा के दर पे भी तुझसे मिलने आएंगे |

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1 MAY AT 20:20

चले तो हम साथ साथ थे फिर भी तन्हा हो गए
क्योकि चालाकियाँ न साथ थी |

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30 APR AT 21:40

वो खुश बहुत है गैरों के आगोश मे
हमने तो अपनों से भी जख्म खाए |

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30 APR AT 19:58

तेरे साथ बड़ा मुक्कमल सा जहां लगता है
धरती तो क्या अपना सा आसमां लगता है
वक़्त रुकता ही नहीं रेत की तरह हाथो में
तेरी बाहों में ही अब मर जाने को जी चाहता है

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30 APR AT 8:07

मेरे बहते जख्मो को देखकर न रहम आया
कहने लगी जिंदगी अभी तो इश्क़ में खाक होना बाक़ी है |

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29 APR AT 10:27

इस सपने ने ही कभी जीना सिखाया था
जब पहली बार तू जिंदगी मे आया था |

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29 APR AT 9:13

मेरी रूह पे आज भी है निसान तेरे प्यार के
की तुझसे मिलकर सांसे तक महकती थी कभी
क्या हुवा जो नहीं तू इस जन्म किस्मत में मेरी
छे जन्मो का साथ अभी बाकी है सनम |

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28 APR AT 18:28

एअक जूस्तजू थी तुझसे मिलने की
कि जिंदगी का आखरी क़याम है तू
यूँ तो दर्द की महफ़िल रोज सजती है
मेरे बहते आँसूवो का दूसरा नाम हो तुम

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