प्रेम
क्या हैं ये प्रेम..?
आखिर क्यों लोग इसे अंधा या पागलपन कहतें हैं,
क्या सच में प्रेम लोगों को अंधा और पागल कर देता हैं,
या प्रेम होने पर लोग देखना नहीं चाहते हैं।
क्या अब मां प्यार से बच्चों को रोटी नहीं खिलाती।
क्या पिता जी प्यार से बिटिया को,
राजकुमारी नहीं कहते।
क्या भाई - बहन में अब वो स्नेह नहीं होता।
क्या धरती बंजर हो गई, जो अंकुर नहीं दे रहीं हैं।
या हम हीर रांझा, रोमियो जूलियट की
जातक कथाओं में उलझ कर
प्रेम देखना नहीं चाहते।
कहीं हम भूल तो नहीं गए,
यशोदा मईया को , उनके हाथ के निवालों को,
प्रेम से गईया चराते उन ग्वालों को।
क्या राधा भूल गई हैं, माखन चोर को,
हम क्या ख़ोज रहें हैं ,जो हमें नहीं मिलता,
कैसा प्रेम हम देखना चाहते हैं, जो नहीं दिखाता,
कहीं हम प्रेम की परिभाषा तो नहीं बदल दिए.?
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