Pankaj Tiwari   (पंकज तिवारी)
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Joined 18 September 2019


Joined 18 September 2019
17 JAN 2022 AT 12:07

अहम और वहम के पीछे अक्सर " हम " ही होते हैं ।

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17 JAN 2022 AT 11:57

पंख उसी को मिलता हैं, जो निर्भय हो उड़ना चाहें रे।

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16 JAN 2022 AT 18:47

कितना आसान होता हैं
ये कहना कि,
"जो मानना हों मान लो "
चलों..! बबूल के कांटों को,
फूल मान लिऐ ,
क्या वो अब नहीं चुभेंगे ?

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15 JAN 2022 AT 18:44

प्रेम
क्या हैं ये प्रेम..?
आखिर क्यों लोग इसे अंधा या पागलपन कहतें हैं,
क्या सच में प्रेम लोगों को अंधा और पागल कर देता हैं,
या प्रेम होने पर लोग देखना नहीं चाहते हैं।

क्या अब मां प्यार से बच्चों को रोटी नहीं खिलाती।
क्या पिता जी प्यार से बिटिया को,
राजकुमारी नहीं कहते।
क्या भाई - बहन में अब वो स्नेह नहीं होता।
क्या धरती बंजर हो गई, जो अंकुर नहीं दे रहीं हैं।

या हम हीर रांझा, रोमियो जूलियट की
जातक कथाओं में उलझ कर
प्रेम देखना नहीं चाहते।
कहीं हम भूल तो नहीं गए,
यशोदा मईया को , उनके हाथ के निवालों को,
प्रेम से गईया चराते उन ग्वालों को।
क्या राधा भूल गई हैं, माखन चोर को,

हम क्या ख़ोज रहें हैं ,जो हमें नहीं मिलता,
कैसा प्रेम हम देखना चाहते हैं, जो नहीं दिखाता,

कहीं हम प्रेम की परिभाषा तो नहीं बदल दिए.?

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16 DEC 2021 AT 17:53

किसी को ये ख़बर हैं
किसी को वो ख़बर हैं
मगर ख़बर यें हैं, की
सबको क्या ख़बर हैं.?

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16 DEC 2021 AT 17:51

सब को लगता हैं कि
सब पता नही,
पर
सब पता हैं सब का
ये सब को पता नहीं.!

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16 NOV 2021 AT 18:18

दुखों से घिरा हुआ इंसान
एक दिन संघर्ष की बेड़ियां तोड़कर
सुख का सशक्त मार्ग ढूंढ ही लेता हैं.!

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16 NOV 2021 AT 18:14

हमारे देश में दो तरह के राजनेता पायें जातें हैं ,
एक सही को गलत कहनें वालें
दूसरे गलत को सही कहने वालें ।

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27 SEP 2021 AT 18:58

वक्त बदलता हैं
बाधा संख्याओं की तरह आती हैं
मगर जरूरत हैं
अपनी धुन में काटाओं की तरह
आराम से चलना
और चल कर
पिछला सबकुछ बदल देना।

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14 SEP 2021 AT 9:43

वक्ताओं के वक्तव्य में कलाकृति सच्ची
भाषाओं की फुलवारी में सुगंध अच्छी
हिंदुस्तान की माथे की अद्वितीय स्वर्ण रेखा
जन- जन कि आवाज़ हमारी मान हिंदी..।

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