अधूरे थें हम
अब पूरे हुए.!-
कितना आसान होता हैं
ये कहना कि,
"जो मानना हों मान लो "
चलों..! बबूल के कांटों को,
फूल मान लिऐ ,
क्या वो अब नहीं चुभेंगे ?-
प्रेम
क्या हैं ये प्रेम..?
आखिर क्यों लोग इसे अंधा या पागलपन कहतें हैं,
क्या सच में प्रेम लोगों को अंधा और पागल कर देता हैं,
या प्रेम होने पर लोग देखना नहीं चाहते हैं।
क्या अब मां प्यार से बच्चों को रोटी नहीं खिलाती।
क्या पिता जी प्यार से बिटिया को,
राजकुमारी नहीं कहते।
क्या भाई - बहन में अब वो स्नेह नहीं होता।
क्या धरती बंजर हो गई, जो अंकुर नहीं दे रहीं हैं।
या हम हीर रांझा, रोमियो जूलियट की
जातक कथाओं में उलझ कर
प्रेम देखना नहीं चाहते।
कहीं हम भूल तो नहीं गए,
यशोदा मईया को , उनके हाथ के निवालों को,
प्रेम से गईया चराते उन ग्वालों को।
क्या राधा भूल गई हैं, माखन चोर को,
हम क्या ख़ोज रहें हैं ,जो हमें नहीं मिलता,
कैसा प्रेम हम देखना चाहते हैं, जो नहीं दिखाता,
कहीं हम प्रेम की परिभाषा तो नहीं बदल दिए.?-
किसी को ये ख़बर हैं
किसी को वो ख़बर हैं
मगर ख़बर यें हैं, की
सबको क्या ख़बर हैं.?-
सब को लगता हैं कि
सब पता नही,
पर
सब पता हैं सब का
ये सब को पता नहीं.!-
दुखों से घिरा हुआ इंसान
एक दिन संघर्ष की बेड़ियां तोड़कर
सुख का सशक्त मार्ग ढूंढ ही लेता हैं.!-
हमारे देश में दो तरह के राजनेता पायें जातें हैं ,
एक सही को गलत कहनें वालें
दूसरे गलत को सही कहने वालें ।-
वक्त बदलता हैं
बाधा संख्याओं की तरह आती हैं
मगर जरूरत हैं
अपनी धुन में काटाओं की तरह
आराम से चलना
और चल कर
पिछला सबकुछ बदल देना।-