एक दौर था ।।
जब एक शौक था ।।
ज़हन में न कोई ख़ौफ था ।।
सब कुछ कितना हसीन था ।।
जब एक वो शख़्स अज़ीज़ था ।।-
आख़िर ये सब क्या हो रहा ?
क्यों अब मेरा कही मन लग नहीं रहा ??
चाहता तो हूं उसे बाहों में अपनी ।
मग़र मैं उससे बात तक नहीं कर पा रहा ।।-
कुछ और नहीं बस थोड़ा सुकून चाहिए ।।
इससे पहले हार मान जाऊं थोड़ा जुनून चाहिए ।।
ख़ुशी आती हुई भी लौटा रहा हूं मैं ।।
कोई झूठा दिलासा नहीं अब मुझे मेरे गुनाहों के सबूत चाहिए ।।
दास्तां चाहे अधूरी रह जाएं मगर अब ।।
इन आंखों में वो नूर, चाल में पहले वाला गुरूर चाहिए ।।-
वादे क्यों करते हो ??
है नहीं चाहत तो मोहब्बत क्यों करते हो ??
एक दिन तो सब ने मर ही जाना है ।।
उससे पहले थोड़ा जी क्यों नहीं लेते हो ।।-
बुरे वक़्त में अपना ही कोई काम आता है ।।
चोट लगे चाहे कही भी,,
सबसे पहला चेहरा मां का ही नजर आता है ।।
ये छुट्टियां थोड़ी और लंबी क्यों नहीं पड़ती??
2 दिन तो साला आने जाने में लग जाते है ।।-
कुछ बातों का सनम इज़हार नहीं होता ।।
ज़िंदगी बीत जाती है मग़र कभी इकरार नहीं होता ।।-
कोई राज़ी तो कोई नमाज़ी हो गया ।।
सब पढ़ लेते है शायद ये दिल अब किताबी हो गया ।।-
रहने दो मेरी कहानी इतनी भी खास नहीं ।।
आईना ही निकला झूठा अब सच की तलाश नहीं ।।
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