तुम तो कहते कहते रहे,हम कभी कह न पाएं
दर्द लाजिमी है,प्रेम है तुमसे,कभी कह न पाएं
अश्रु छलके तुम्हारी आँखों मे,हमारी आँखों मे
अश्रुओं को भी अधूरी कहानी,कभी कह न पाएं
सात जन्मों का वादा,साथ जीने मरने का इरादा
इस जन्म ही तो तुमसे जानां,कभी कह न पाएं
कोई रोक हो,कोई टोक हो,ऐसा भी कुछ न था
तुम्हारी बेरोकटोक आवाजाही,कभी कह न पाएं
एक तुम थे,एक हम है,हम में कितना अपनापन था
अपनेपन में भी तो दिल की बात कभी कह न पाएं
अधूरे ख़्वाब,अधेड़ दहलीज़ पर दस्तक दे तो रहे है
जिंदगी की राह से गुज़रती यादों से कभी कह न पाएं
वक़्त मिले तो साथ मेरे आज शाम टहलने को चलना
टहलते टहलते भी तो तुम्हे अपना कभी कह न पाएं !-
रक्त तो क्या किया,इशारा किया
गर्दन हाथ में,एक दोबारा किया
कौन कटा,कौन तो महफूज बचा
वक़्त ने महोब्बत से इशारा किया
आज लूटने को तो बेक़रार योद्धा
बस तुमने तो आज बेचारा किया
ख़ून खोला,रक्त ने आगाज़ किया
तुम थे,तुमने ही तो किनारा किया
अब फिर एक मुलाकात हो,पूरी हो
देह को देह से ही तो जियारा किया
रातों,बातों में ही तो जिंदगी सँवरि
दुनियां से मिलने को करारा किया
जहां देखूँ वही तुम ही तो तुम नज़र
किसी और को देखूँ तो नकारा किया-
जी हुजूरी और जी हुजूर क्या होता है
तू सामने होता है तो दिल मे क्या होता है
एक तू ही हुजूर,एक तू ही जी जान है
तुझ पर सात जन्म लुटाने में क्या होता है
इस जन्म को तो मिली दूरियाँ सौगातों में
दूरियों में भी तुझे चाहते रहने में क्या होता है
यह बात तो महोब्बत कि है मेरे जी हुजूर
नाम तुम्हारे सर कलम करवाने में क्या होता है
कुछ तुम्हारे दिल मे भी धड़कता है क्या
प्यार का एक नगमा पेश करने में क्या होता है
मैंने न जाने तुम पर,तुम्हारे लिए,कितने अल्फाज कहें
लिखूँ एक नज़्म,ग़ज़ल या मर्सिया,उसमें क्या होता है
कभी तो दूरियों का क़त्ल करके मिलने आओ तो
सरेआम बाहों में भरकर गले लगाने में क्या होता है !-
सर तो कटेगा,खून भी बहेगा
जंग में,लहूलुहान तन लड़ेगा
घात से पीठ पर ही वार किया
युद्ध भूमी में तो दुश्मन मरेगा
छुपाछूपी के खेल तो बहुत हुए
दुश्मन से तो कोई,पल न डरेगा
कोई अपने के वेश में छुपा गैर
गैरों से ही तो दो दो हाथ करेगा
जिद्द है मौकापरस्त को गिराने की
रंगभूमि में आज हाहाकार मचेगा
न कोई रोक,न कोई टोक,युद्ध है
युद्ध मे आज युधिष्ठिर ही डटेगा
महाभारत के आगाज़ को अंजाम
माधव के हाथों ही सिंहनाद बजेगा-
रात सोते दिल मे आप
सुबह होते दिल मे आप
बड़ा मजबूर है दिल मेरा
संगदिल हूँ में,दिल मे आप
खोया खोया सा रहता हूँ
खोए हुए ही दिल मे आप
कब कहता हूँ कि इश्क़ है
रँगीन इश्क़ से दिल मे आप
मसला अगर हल हो जाएं
रूखसत होते दिल मे आप
ठहर जाने को भी बहाना दे
बहानो से छुपे दिल मे आप
कमतर यहाँ आप से कुछ नही
नहीं होने पर भी दिल में आप !-
आँखें भर भर के रोई और वो खड़ा सामने देखता रहा
कोई मुझ से भी बड़ा मजबूर औऱ खुद को देखता रहा
मैं कैसे कह दूँ की वो मेरा तो कुछ भी नहीं लगता था
मेरी दुनियां को छोड़ किसी और दुनियां को देखता रहा
यह बात तो मैंने पतें पर लिख ही डाली एक आरज़ू में
मिलने की आरज़ू क्या करता,गुमनाम पतें को देखता रहा
कौन कब बिछड़ा,कौन कब मिला,मुझ को सब याद है
अपने से मिलें औऱ बिछड़े को बहीं खातों में देखता रहा
मुसस्सल हिसाब किताब कर ही देता पर लिहाज बाक़ी
इन लिहाजों मे खड़े इंसानों में इंसान को ही देखता रहा
आज रात बहुत गहरी है जो मुझ को सोने भी नही देती
सोता मगर सोने में ख्वाबों के इम्तिहानों को देखता रहा
ये कैसी कर्जजायत जिंदगी मुझ पर ही तो आ पड़ी है
मैं उसको मूल में देखता औऱ ब्याज की मार देखता रहा-
महोब्बत है या नफ़रत,किसको मालूम
तू है या मेरा एक भरम,किसको मालूम
गुज़रते गुज़रते ही तो गुज़र ही गया हूँ
अब हूँ या नहीं यह भी किसको मालूम
कौन रहता था जो मेरा लिहाज़ पूछता
रहता है या नहीं यह भी किसको मालूम
उम्र भर के फ़ासले और फैसले साथ रहे
वो रहे या नहीं यह भी किसको मालूम
तराना तो मचल गया ही गया है उनसे तो
साज़ को मालूम या नही किसको मालूम
हक़ की बात करे तो हर तरफ़ ही हो हंगामा
हंगामें में वो रहता है या नही किसको मालूम
दिल धड़कता तो है आज भी बहुत जोरों से
दिल मे रहता,बस्ता है या नही,किसको मालूम !-
खुलकर हँसने वाली लड़कियां,
बाकमाल रूठ जाती है
मैंने तितली को देखा है,
लड़कियां तितली बन जाती है
कमतर एक दूसरे से कौन हो सकती है ?
खुद से प्रश्न करता हूँ !
कभी कभी वे एक दूजे से
जुदा जुदा सी हो जाती है
परायी हो जाती है !-
दुनियां देख,दुनियां के रंग देख
बहुतेरे आएंगे,बहुतों के रंग देख
ये मसला हल न होगा कभी भी
तू देख,देख के सारों के रंग देख
रंगों की दुनिया है,रंगों को देख
जो दिख रहे है,उनमें ही रंग देख
यहाँ वहाँ बिखरें बिखरें रंग देख
हो सके तो हथेली के भी रंग देख
जो मिला है उसको भी तो देख
नहीं मिला,उसके भी तो रंग देख
यहाँ तो सब कुछ ऐसा होता है
जो नही होता,वो ही तो रंग देख
देखते देखते तो बहुत कुछ हुआ
उनको भी तो देख जो न रंग देख-
एकसाथ एक बिस्तर में लेटे हुए
समहते समहते,डरते हुए,लेटे हुए
पूरी रात बिता दी पहल कौन करे
एकदूजे पर ही बिना बात रेंगते हुए
एक दूजे को तो हाथ लगाएं बिना
एक दूजे की आँखों में देखते हुए
ना उस ने कहाँ महोब्बत है,प्रेम है
मेरा कहना ही क्या,क्या कहते हुए
एकदूजे से लिपट,अंगड़ाइयां भी ली
दर्द को भी चुपचाप ही तो सहते हुए
शर्मिंदा कौन हुआ,पहले किसने जाना
दिल में ही एकदूजे के भी तो रहते हुए
हो जाती है महोब्बत,अक्सर महोब्बत
जवां महोब्बत के रंग भी तो ढलते हुए-